________________
*
उपदेशसप्ततिका
***
******
॥२३॥
*
**
*
तीए विणा धम्ममई वसिजा, चित्ते कहं उकजरं तरिजा ॥५॥ विरत्तचित्तस्स सयाऽवि सुकं, रागाणुरत्तस्स अईव पुरू। एवं मुणित्ता परमं हि तत्तं, नीरागमग्गम्मि धरेह चित्तं ॥६॥ परिग्गहारंजजरं करंति, श्रदत्तमन्नस्स धणं हरंति।। धम्मं जिणुत्तं न समायरंति, जवन्नवं ते कदमुत्तरंति ॥७॥ थाणं जिणाणं सिरसा वहंति, घोरोवसग्गा तहा सहति । धम्मस्स मग्गं पयडं कहंति, संसारपारं नणु ते बहंति ॥॥ जासिङाए नेव असञ्चजासा, न किङए जोगसुहे पिवासा। खंडिजाए नेव परस्स बासा, पम्मो य कित्ती श्य सप्पयासा ॥ ए॥ पुरंतमिछत्तमहंधयारे, परिप्फुरतम्मि सुखनिवारे। न सुधमग्गोउ चलंति जे य, सखाहणिजा तिजयम्मि ते य॥१०॥
*
*
*
474 For PV Personal use only
*
Jain Education Intel
Vilww.jainelibrary.org