SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 263
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पञ्चंतगामवासी अनिवहतो स संपत्तो॥४॥ तत्तो सयमेव हलं वाह साहइ किसिं किसंगोवि । इत्तो विन्नत्तो दोसगयवरो सहरिसं समागम्म ॥४५॥ अणबंधिकोहनामेणऽहवा वेसानराप (व) ररकण । जिप्सुएणं तस्स य ताय अहं जलणसिहपासे ॥ ४६॥ पुषमजूवमहं खल्लु विचालए परमहो समागच्च । सम्मईसणसत्तू पविच्छ तो वयं ना ॥४॥ संपश्यमत्थि ( तत्थ स नत्थि) तुम्हे नणु वीसमेह निच्चंता । आश्सह मन (ह) श्रज नियनुयविरियं खु दंसेमि ॥४॥ तायप्पसाय तं पढ़ा वालेमि कहेलाए । तो पिजणाणुन्नार्ड जलणसिहस्संतियं पत्तो ॥४ए ॥ तस्संनिहाणवस जह-1 त्थनामो इमो हु संपत्तो । थेवेवि दु अवराहे रूस न हु तूसइ कहिंपि ॥ ५० ॥ न तामर फोम जमे चरण कोहकलहेण । वट्टर घट्ट पाएहिँ मायरं सुविणीयतया ॥ ५१ ॥ पियरंपि दु अवमन्नइ न गण नियबंधणे (धुणो ) तणस-18 मेवि । देवगुरूणवि विमुहो स संमुहं नए मुखयणं ॥ ५ ॥ तत्तो सो परिचत्तो सबेणवि परियणेण रोगिव । विजहिडसनरोगो सोगोवग दुई बाढं ॥ १३ ॥ अह अन्नया अनिबहमाणोनापोवगपरिमुक्को । चंमालकुले जग्गो खित्ताणं ख (खि)मणकङसु ॥ ५४॥ पत्ते वासारत्ते खंगलयं खेझए नवे खित्ते । न चलश्क बलो गलियारत्तण तरुणोवि॥ ५५॥ वेसानरेण एसो अहिन्छि गाढमेव खित्तम्मि । तो तामा निस्संकं श्राराहिं दूहवा वसहं ॥५६॥ तहवि अचखंतमयं मम्मम्मि य थाहण हयासो सो। कहियजीहो दीणो पमि गोणो महीवीढे ॥ ५७ ॥ तो वेसानरविवसो अच्चत्यं वामवो सुपिस्संतो। दंताई पुचमेयस्स मोमए तोमए केसे ॥ ॥ तहवि न न जा नुयलयात ता ख (खि) मिय-18 खित्तमखएहिं । तह पिट्टिन जहेसो पाणेण खणेण परिचत्तो ॥ एए ॥ तहवि न रोसग्गिनरो उवसमि तस्स समहि 24 Jain Education International For Private & Personal use only __www.jainelibrary.org
SR No.600046
Book TitleUpdeshsaptatika
Original Sutra AuthorKshemrajmuni
Author
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages506
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy