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________________ समिणं दिनं महीवश्णो ॥ २० ॥ जह मानणु नागदत्त श्य पथकं । इत्तो सो समय ॥१३॥ समणप्पसंग-1 सुमिणं दिन महीवश्णो ॥२०॥जह मा सप्पे मारह नागकुखा विस्सई पुत्तो। जम्हा तुम्हाण घरे तस्स य पुण। सप्ततिका कदारगस्स श्रहो॥ ए॥ नामं गुणाजिरामं दिडा नणु नागदत्त श्य पयम् । इत्तो सो खमगथही पाणपरिचायमावन्नो ४॥३०॥ तस्सेव नूमिवश्यो पत्तो पुत्तत्तमुत्तमगुणहूं। तन्नाम नागदत्तोत्ति कयं पियरेहिं चन्चवट ॥३१॥ समणप्पसंगवस उवएससुहारसं त पिच्चा । नच्चा जवस्सरूवं विणि (ण) स्सरं खदुवए चेव ॥३॥ पवन गुरुपासे आस तो य विहसिका। संजा गीयत्यो सुत्थावत्यो जाइ गुणई ॥ ३३ ॥ तिरियजवन्नासा बहाउलो सो अव संजा। श्रारन्न दियरुग्गमवेलं जा हो अत्यमणं ॥ ३४ ॥ मुंजतो ता चि अंतं पंतं सुनीरसं सरसं । न दु रत्त चित्तो उवसंतो धम्मसजिलो ॥ ३५ ॥ रूस न हु कएहिं कसायवयणेहिं उजाणुत्तेहिं । तुस न थुपिजतो वट्टा समनावमावन्नो ॥३६॥श्रह तम्मि चेव गल्छे अछेरयकारि मुक्करतवस्सी। चत्तारि संति खमगा चाउम्मासियतवो पढमो॥३७॥ तेमासिद य बीती दोमासि मुणेयबो। गमासि चलत्यो एवं चनरोवि ते संति ॥ ३० ॥ पर। तेसिं खुड्डगमुणी महप्पा स अस्थि वासीणो। चचरोवि समुझंघिय खमगे तह कोहमाणिक्षे ॥ ३५॥ श्रागम्म देवयाए तीए सो वंदिउँ महानागो। श्रश्नत्तिनिन्नराए गिराश् महुराइ संथुपि ॥४०॥ श्य पासित्तु पकुविया खमगा चनरोवि देवयाचरियं । निग्गवंती वत्थे गहिया चउमासिणा मुणिणा ॥४१॥ जणिया अवयणेहिं रे पिछे रुचित्ति पावि- ॥१०॥ । गतिचउमासाईकरतवकारिणो श्रम्हे ॥ ४ ॥ कीस न वंदसि मुझे सुरत्तणं तुह धिरत्यु धीवियले । एयं खु कूरजायणमुणिमणवरयं च पणमेसि ॥४३॥ तिरिजच जो बुहालु चिच्छ परिनुक्रमाण निच्चं । तेण कह मोरया 240 Jain Education in For Private & Personal use only 1 ww.jainelibrary.org
SR No.600046
Book TitleUpdeshsaptatika
Original Sutra AuthorKshemrajmuni
Author
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages506
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size11 MB
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