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________________ विश्ववलिप्पसूणसंसोद तिरुमहिं । सो सीइगुहं पतिं गर्ल गटब्रेस संफुलिं ॥ १४ ॥ पढमप्पहारकारी धारी निर्त्तस्याइ निस्संकं । तकरसेणादिवई सो जाने निलमज्जम्मि ॥ १५ ॥ सगिहम्मि सुंसुमा सो इत्तो दित्तोरुदेहकं तिम्ला । जाया जुञ्जएकाले पालेय गिरिंदधूय ॥ १६ ॥ अन्नायपरो अह अन्नयेस श्रहिंसु चोरसेलाए । जामो रायगिहम्मी धणमणि| संपूरिय गिहम्मि ॥ १७ ॥ तत्थ धणनाम सिद्धी हिठीकयतिसिरेट सरिद्धीए। तस्स य पुत्ती किन सुसमित्ति सा मज्छ तुम्ह धणं ॥ १० ॥ संपता तत्थ पुरे अन्नया दुन्नयावहा चोरा । अग्गे चिलाइपुत्तं काळं दावं सबदुमाएं ॥ १९ ॥ | धणजवणमणुपविद्या पाविद्या खुंटिडं समारा । श्रवसों पदानं साहित्ता श्रप्पणो नामं ॥ २० ॥ चकिया सेस्स व सा चकिया तकरमिमा रमाख्वा । गेहोवरि वट्टंती चिघंती मयसिकाए ॥ २१ ॥ संगहियगेहसारा तारा इव दिएयरोदए जाए। नका सबे चोरा रोरा इव गहियनत्ता ॥ २२ ॥ तप्पि स मुझे पधाविर्ड सुंसुमाजुर्ज सहसा । संजालइ सिद्दी यह सबाई घरमणुस्साई ॥ २३ ॥ गठन सर्व दवं संपऊल माणुसाए कुसलंति । जा पासइ नियधूयं ता पि तं न सय ॥ २४ ॥ श्रह विन्नवइ नरिदं गिरिहय तस्सुहरु सिन्नपरिवारं । सुयपंचगेष सद्धिं सिद्धी तप्पुहिमलग्गो ॥ २५ ॥ उग्गावि हु जग्गा चोरा सबंपि वालियं दवं । नयरं पइ ते वलिया ससु सिडी चिलायस्स ॥ १२६ ॥ जावासन्नमहीए पत्तो तत्तो इमो विचिंते । मामप्पासात इमे गिएइंति बलेए नए श्रावतं ॥ २७ ॥ जह मह तह एयस्सवि मा हवल मा मम्मि ड्य मुलिलं । निचित्तु तयं सीसं गिरिहय सो अग्ग चलिये ॥ २८ ॥ जं पुब १ कुबेरः. २ यथा चटिका श्येनकरे पतति तथा सुंसुमा चिलातीपुत्रकरे चटिता. Jain Education International 207 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600046
Book TitleUpdeshsaptatika
Original Sutra AuthorKshemrajmuni
Author
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages506
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size11 MB
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