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कारवियं तेणेयं जिणहरमिति नाजिनिवपुत्तो। देवो सेवोचियपयकमखो कमखोहवुहिवरो॥२७॥ अहमागउँऽम्हि तम्हा पुराउ नणु गयणवहाउ इहं । न हु कवि गठिस्सं मरियमवस्समिठ मए ॥२०॥ गयवासरे समेट विजाचारणमुणी महानाणी। वंदित्तु श्मो पुणे मए पमाणं नियाजस्स ॥ ए॥ तेणुसवियं तुह पंच वासरा अहि जीवियचं लो। तुरियं कुरु थप्पहियं परिहर श्रारंजसंजारं ॥३०॥ तबयणमिइ सुणित्ता समागट व सिग्धमेवाहं । अणसणविहिणा मरणं पमिवस्सिामि इह सेले ॥३१॥ तुज्कवि थर्ड परं नणु अरिहं देवो सुसाहुणो गुरुयो। धम्मो रम्मो केवलिकहि हिययम्मि वहियबो ॥३॥ निम्मंतुजंतुनिवहा न दु थूला सबहा निहंतबा । वत्तवं न दु श्रलियं न गिपिहयवं श्रदिन्नधणं ॥३३॥ परिहरियवा विलया अन्नस्स परिग्गहो न बहु कजो । असणीयं न दु मंसं मऊ पंचुंबरेहि समं ॥ ३४ ॥ न दुाहेमयवित्ती न दुरत्तीजत्तमवि विदेयत्वं । नुत्तबमविनायं न फलं सफलं ज जम्मं ॥३५॥ उवचरियवा अजा नेव श्रणकाण संगई नका (कजा)। एसो सावयधम्मो सम्मं हियए धरेयबो ॥ ३६॥ तह मंतमेगमहुणा गिहाण सुविहाणजूयमुत्तमयं । पंचनमुक्कारमहो जस्साश्स जए गरुळ ॥३७॥ तस्सापावसवत्तिणो नरगणा देवावि सेवापरा, जरका रकपिसायसाइणिमहाजूआ न जीश्प्पया। संगामे न जयंकरा करिवरारूढा महावेरियो, जञ्चित्तम्मि निरंतरं रश्करो सारो नमुकारो ॥३०॥ काययो पइदिवसं तिसंऊमेसो गुणाय सुनिवेसो । जेषाजिमयसयाएं सिद्धी रिद्धी य विष्फुरद ॥३ए॥
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