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________________ उपदेश ॥ ४३ ॥ Jain Education Int ह तस्स पढियनिरवऊपर विकस्स सोमचंदस्स । मायंगिसुविका साहणमेहा समुत्पन्ना ॥ ६१ ॥ तीसे एसो य विही चंडालिणिगेहसंठिए दिये। कवि दु विही विहेयो मायंगसुयं विवादित्ता ॥ ६२ ॥ पमिसियोऽवि निवेणं सहोयरेणावि वारि सोमो । सुइयविकार सिर्ज गर्न कुणालाइ नगरीए ॥ ६३ ॥ तत् घणदवियरणपुढं माईगिणिं विवाहेचं । सिढिली कयबहु विकावावारो सुमर हिट ॥ ६४ ॥ गलियकुलायारो लामजायवक्रि बाढं । कंताए श्रसत्तो जार्ज पुत्ताइपरिवारो ॥ ६५ ॥ ते कुमग्गाव किए कम्मन किएण तायजायाणं । दूरं वत्ता चत्ता जवए गोबरस्सेव ॥ ६६ ॥ विचंदो चंदोब निम्मलो निक्कलंक मंगल | सबकलाकोसलोवगर्नु सुइसीलसीयल ॥ ६७ ॥ कवि को मुलासवं वहंतो य । श्रारुहिय वरविमाणं सुंदरि गितजसपसरो ॥ ६० ॥ सिरधरिधत्तो पत्तो जगई जंबुदीवस्स । महया विठणं किड्डुं काउं स परियरि ॥ ६ए ॥ किलित्ता तत्थ गिहूं पर चलि खलियकुंमलाहरणो | कहवि नयरी कुणाला उवरिं वञ्चंत पत्तो ॥ ७० ॥ नेहेण समुत्तर नरि पुन्नोदएण पुन्ने । नियनायरं पखोयइ अइनेहलनयणजुयलेणं ॥ ७१ ॥ इय जंप मार विरुद्धमेयं कई समायरियं । तुम हो सहोयर लोवित्तु कुलकमं निययं ॥ ७२ ॥ मलिक कहप्पा तुमए निंदियकुले वसंते । मयगकलेवररत्तो काउब तुमं अहो जाई ॥ ७३ ॥ अरहिगंधफुट्टंतनासयं दूर पणस्संतं । किं न हु पस्ससि लोयं बुत्तिया दूर जंतं ॥ ७४ ॥ 86 For Private & Personal Use Only %% सप्ततिका. ॥ ४३ ॥ www.jainelibrary.org
SR No.600046
Book TitleUpdeshsaptatika
Original Sutra AuthorKshemrajmuni
Author
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages506
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size11 MB
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