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________________ -धीआवश्यकमलयगिरीयवृत्तौ नम- स्कारे हरणानि ॥५२९॥ ऊण रयणीए उवद्विया, विइयदिणे तस्स संवेगो-मए भग्गं वयंति, तीसे जहावडियकहणं, तीसे पारिणामिगी बुद्धी । पारिणामिअमचेत्ति, वरधणुपिया जउघरे कए चिंतेइ-कुमारो कहपि रक्खियबो, सुरंगाए नीणितो, पलातो, एयस्स पारिणामिगी । क्याः उदा. बुद्धी ॥ अण्णे भणंति-एगो राया, देवी से अइप्पिया कालगया, सो मुद्धो, तीए वियोगदुक्खितो न सरीरस्थिति करेइ, मंतिहिं भणितो-देव ! एरिसि संसारस्थिती, किं कीरउ !, सो भणइ-नाहं देवीए सरीरस्थिति अकरेंतीए करेमि, मंतीहिं परिचिंतियं-न अन्नो उवायोत्ति, पच्छा भणियं-देव ! देवी सरगं गया, तत्थद्वियाए य से सवं पेसिजउ, लद्धकयदेविद्वितिपउत्तिए पच्छा करेजसु, रण्णा पडिस्सुयं, माइठाणेण एगो पेसितो, रण्णो सगासं सो आगंतूण साहइ-कया सरीस्थिती देवीए, पच्छा राया करेइ, एवं पइदिणं करेंताण कालो वच्चइ, देवीपेसणववएसेण वहुं कडिसुत्तमाइ खजई राया, एगेण चिंतियं-अहंपि खाएमि, गतो रायसगासं, तेण भणियं-कुतो तुमं?, भणइ-देव ! सम्गातो, रण्णा भणियं-देवी दिवा!, सो भणइ-तीए चेव पेसितो कडिसुत्तमाइनिमित्तगंति, दावियं से, जहिच्छियं किंपि न संपडइ, रण्णा भणियं-कया गमिस्ससि ?, तेण भणियं-कल्लं, ते संपाडिस्सं, मंती आदिवा-सिग्घं संपाडेह, तेहिं चिंतियं-विणटुं कर्ज, को एत्थ उवाउत्ति विसण्णा, एगेण भणियं-धीरा होह, अहं भलिस्सामि, तेण संपाडिऊण राया भणितो-देव! एस कहं जाहिइ १, रण्णा भणियं-अण्णे कहं जंतगा ?, तेण भणियं-अम्हे जं पट्ठवेंता तं जलणप्पवेसेण, न अन्नहा सग्गं गम्मइ, रण्णा भणियं-त- ५२९॥ हेव पेसेह, तहा आढत्ता, सो विसण्णो, अण्णो धुत्तो वायालो रण्णो समक्खं बहुं उवहसइ, जहा देवी भणिज्जासि-सिणेहवंतो राया, पुणोऽवि जं कजं तं संदिसिजासि, अण्णं च इमं च बहुविहं मणिज्जासि, तेण भणियं-देव ! नाहमेत्तियग TESEX PROCESOSHLARICHSHUGG दहा-सिग्धं संपाडेह, तेहिं पिरण्णा भणियं-कया गमि । भणियं-धीरा होह, SANSAR Jain Education Inter For Private & Personal use only KIww.jainelibrary.org
SR No.600045
Book TitleAvashyakasutram Part_3
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami, Malaygiri
Author
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages312
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_aavashyak
File Size18 MB
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