SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 99
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पतिष्ठा ६३ Jain Educati *199 अरु स भिन्न-श्रोत्र-पतिका धारो अरु पादानुसारी असे देखे हैं संसारका पदार्थ विभाव जिनन, अरु तत्त्व करि संकल कियौ है धर्म - ध्यान अर शुक्लध्यान जनन", असे निःपाप मुनीश्वर जे हैं ते ज्ञानलाभनं देवौ ॥ २८३ ॥ स्पर्शनश्रवणलोकनबुद्धाः घ्राणसंस्थरसनोपकृता ये । दुरतोऽप्यनुभवं समाप्ता बोधिलाभमनघाः प्रदिशंतु ॥ २६४ ॥ अरु स्पर्शन श्रवण अवलोकन बुद्धिके धारी अरु घ्राण रसनाका उपकार-कर्त्ता, ते दूरतै अनुभवने प्राप्त भये जे निःपाप मुनीश्वर मेरे अर्थि बोध-लाभनै देवी ॥ २८४ ॥ नवर्यविधिना चतुर्दश दिग्सुपूर्वमतिना निमित्तगाः । वादिबुद्धकृतिनो मतिश्रमाः बोधिलाभमनघाः प्रदिशंतु ॥ २६५ ॥ बहुरि छिन्नस्वर आदि निमित्त विधि करि चोदह पूर्वका धारी निमित्तज्ञानी तथा वादिबुद्धिका धारी, नहीं है मतिका परिश्रम जिनकें, से निःपापमुनीश्वर जे हैं ते मेरे अर्थि ज्ञानलाभ देवी ॥ २८५ ॥ अष्टधोक्तदशधाभिदया ये बुद्धिवृद्धिसहिताः शिवयत्नाः । विमलादिगदहापनदेहा बोधिलाभमनघाः प्रदिशंतु ॥ २६६ ॥ बहुरि अठारा प्रकार बुद्धि ऋद्धिका धारी अरु मोक्षमै है यत्न जिनकैं अरु विशुद्ध अरु जिनके मल आदि करि रोग नष्ट होजांय ऐसे. निःपाप मुनीश्वर मेरे अर्थ ज्ञानलाभनें देवो ॥ २६६ ॥ दृष्टिवक्लमनसां विषभक्ति प्रीणिताः श्रुतसरित्पतिपुष्टाः । लोकमंगलिषु संन्यसिता ये बोधिलाभमनघाः प्रदिशंतु ॥ २६७ ॥ दृष्टि अरमुख र मनके आधार विषऋद्धिके धारी अरु शास्त्र समुद्रका पारगामी अरु लोकनैं अपनी अंगुलि करि स्थापन करनेवारे जे हैं, ते मेरे अर्थि ज्ञानलाभनें देवौ ॥ २६७ ॥ For Private & Personal Use Only पाठ ६३ www.jainelibrary.org
SR No.600041
Book TitlePratishthapath Satik
Original Sutra AuthorJaysenacharya
Author
PublisherHirachand Nemchand Doshi Solapur
Publication Year
Total Pages316
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy