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________________ भतिष्ठा पाठ 359084%EGORGEOPLE अथ मंत्रः अरु जिस वंशमें भयो तीर्थंकरका बिंबने उद्देश करि मुख्य प्रतिष्ठा होय ताही वंशका कुल गोत्र अरु जन्म इनका प्रवेशत प्रवार प्रवर्तमान गोत्र अरु प्राचरणको निवृत्तिका योगते वर्तमान भव गोत्र कुलमें प्राप्त भया अशोचकू नहीं धारण करे॥ भावार्थ-जिस दिन नांदी अभिषेक भया ता दिनसे वर्तमान कुलको मूतक तथा मूवो नहीं माने है ॥२५॥ ओं तत्सदध योगभक्तिसिद्धभक्तिस्वस्तिवाचनपूर्वकमंत्राभिषवकर्मणि अस्य यजमानस्य इक्ष्वाक्वादियशे श्रीऋषभनाथादिसंताने का. श्यपगोत्रे परावर्तनं यावदध्वरं भवतु भवतु क्रौं ही है नमः इत्युक्त्वा यजमानस्य पट्टबंध इन्द्रस्य मुकुटवंधं व क्रियादाचायः । याका मन्त्र-ओं तत्सदद्य .. "याका अर्थ-संवत्सर मास तिथि नक्षत्र वारादि तथा देशकालादि उच्चारण करि योगभक्ति सिद्भाक्त अरु स्वस्ति वाचन पूर्वक जो इंद्र नांदी अभिषेक कर्ममें अमुक यजमानको इक्ष्वाकु आदि वंशमें श्री ऋषभनाथ आदिका संतानमें काश्यपगोत्रमें परावृत्ति होऊ। यावत यज्ञ समाप्ति न होय तावत ऐसे कहि यजयान पवध तथा इंद्रके मुकुटबंध प्राचार्य करे। तस्मिन् क्षणे तन्महतीपुरस्तात् चतुर्विधं वाद्यगणं प्रशस्य । स्थाप्यं तदीशान् पुरुचारुवस्त्रेः सन्मानयेत्तत्र विधौ नियुज्यात् ॥ ५॥ अर ताही क्षण उस उत्सबमें मंडप वेदोके चहु'तरफ च्यार प्रकार जो तत वितत घन सुषिर-रूप जो वादिन गणने प्रशंसित करि स्थापन करनो अरु ताके स्वामीनिको प्रचुर सुंदर वखादिकरिता प्रतिष्ठा विधिमें नियोजित करे ॥ २५६ ॥ एवं नांदीविधानेन कृतारंभक्रियो नरः। सन्मंगलपुरस्कारैः सौख्यभागी भवेत्सदा ॥६॥ ऐसे नांदी विधान करि जो प्रतिष्ठाको प्रारंभक्रिया करे सो पुरुष समीचीन मंगल अगवाणी करि सदा सुखकों भागो होय है ॥२६॥ alibrary.org Jain EducatiATWIL.al For Private & Personal Use Only
SR No.600041
Book TitlePratishthapath Satik
Original Sutra AuthorJaysenacharya
Author
PublisherHirachand Nemchand Doshi Solapur
Publication Year
Total Pages316
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size17 MB
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