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________________ प्रतिष्ठा BANS सन्मंगलोद्गानपवित्रताभिर्वेद्या तथा स्थंडिलकोपकंठे ॥ ३१॥ अर उनको सन्मानकरि कुलवती शीलवती स्त्रियां संयुक्त पाठ कन्याकरि भूषित होय समीचीन मंगलपाठ स्तोत्रन करि पवित्र असा भूषण वखादि संयुक्त कन्याकरि वेदो समीप स्थंडिलमें तिष्ठ ॥२३१ ।। चूर्णानि संमद्य सितासितानि पीतानि रक्तानि हरिन्निभानि । पात्रे निधायार्घ्यमनर्थ्यशील प्राचार्यभक्तिं प्रपठेद् यतात्मा ॥ ३२ ॥ अरु वहां शुक्लवर्ण, कृष्णवर्ण, अरु पीतवर्ण रत्नवण तथा हरितवण के चूण नको पीसकरि पात्रमें स्थापनकरि यजमान स्वच्छ-वभागो यजमान हुवो संतो आचार्यभक्तिने पडे ॥२३२ अत्राचार्यभक्तिश्रुतभक्त्यहभक्तिनिर्वाणयोगमक्तयोऽनुपदमेव वक्ष्यमाणास्ततोऽत्र सर्वत्रान्नेवाः । इहां प्राचार्यभक्ति श्र तभक्ति अहं द्रक्ति निर्वाणभक्ति पाठ करना जरूर है सो आचार्य ग्रयकर्ता समोप हो कहेंगे, तात सर्वत्र जहां मेसो । भक्ति पाठका कार्य होय तहां तैसी ग्रहण करि लेना । अथ गुर्वाज्ञालंभनविधिः। अब प्रथम गुरुकी आज्ञाको लाभको विधान कहिये है, सो ऐसे हैं पुष्पाक्षतैक्तिकदामभिस्तान् सर्वान् समापृच्छय मृदुस्वभावात् । रात्रिं समां जागरणवतेन नयेत्स्वयं मांगलिकानुभावः ॥ ३३ ॥ स्वयं आप मंगलाचरणकर्ता व सर्व बंधुजन अथवा कन्या अथवा सुवासिनी आदिकपुष्पाक्षतादिक मौक्तिक मालानकरि कोमल स्वभाव || ते सत्कार-युक्तकरि समस्त रात्रिने जागरण व्रतकरि व्यतीत करे ॥ २३३ ।। प्रातर्गृहीत्वा गुरुपूजनाऱ्या वादिननादोल्वणयावया सः । गुरूपकंठे नतमस्तकेन भूमिं स्पृशन् वाक्यमुपाचरेत्सत् ॥३४॥ AMPARKHABAR Jain Educati o nal For Private & Personal Use Only ALMelibrary.org
SR No.600041
Book TitlePratishthapath Satik
Original Sutra AuthorJaysenacharya
Author
PublisherHirachand Nemchand Doshi Solapur
Publication Year
Total Pages316
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size17 MB
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