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________________ MARRESGRA % अथ प्रतिमानिर्माणमुहूर्तः । अथ प्रतिमाका निर्माणका मुहूर्त कहिये है - उत्तराणां त्रये पुष्ये रोहिण्यां श्रवणे तथा । वारुणे वा धनिष्ठायामार्दायां विंबनिर्मितिः ॥ १८४॥ अथे-उत्तरा तोन पुष्य रोहिणी श्रवण चित्रा धनिष्ठा आर्द्रा सोम गुरु शुक्रमें विव वनावना श्रेष्ठ है ॥१४॥ प्रसन्नमनसा कारं संतप्यं पुष्पवाससैः। तांबूलैविणर्यज्वा कारयेन्नेत्रहृत्प्रियं ॥१८५ ॥ गुरुपुष्ये तथा हस्तार्यम्णि गर्भोत्सवे शुभान् । निमित्तान्नवलोक्येशप्रतिमानिर्मितिः शुभा ॥१८६ ॥ __सो ऐसे कि-पूजक प्रथम प्रसन्न मन करि पुष्प वस्त्र तांबूल अर दक्षिणा आदि करि कर्ता सिलावटनै संतोषित करि अपना नेत्र हृदयको | मनोहर ऐसा बिव करावै तथा गुरु पुष्य योग तथा हस्ताक योगमें तथा जिस भगवानका विव बना होय उस भगवानका गर्भ कल्याणक दिनमें निमित्त शुभसूचक देखि करि प्रतिमा निर्माण योग्य होय ॥१८५-१८६ ॥ 49550063GEELCASRAMOS - CCOREIGEOGOPMEGRECORN.COM - अथ प्रतिष्ठामुहूर्ताः। अब प्रतिष्ठाके मुहूर्त कहिये है लग्नस्य शुद्धिमभिधाय सुपंचधाग्यां. यां वारयोगतिथिभादिकलमशुद्ध्या । नैमित्तिकार्थपरिसंकलनैः पुराणैरुक्तां प्रतिष्ठितिविधौ पुरतो विदध्यात् ॥ १८७॥ भौम रविं शौरिमपास्य वाराः सर्वे हि शस्याः किल संस्थितौ च । सिद्धामृतादिं परियोज्य रिक्ताममां त्यजन् याति सुसौख्यभावं ॥ १८८॥ Ram -- Jain Educational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600041
Book TitlePratishthapath Satik
Original Sutra AuthorJaysenacharya
Author
PublisherHirachand Nemchand Doshi Solapur
Publication Year
Total Pages316
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size17 MB
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