SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 5
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रस्तावना। ROHORSREMORREC-1553HCHACHERE यह प्रतिष्ठापाठ भगवत् श्रीकुदकुदखामोके पट्टशिष्प श्रीमत् जयसेनाचार्यका बनाया हुवा है, भगवत्कंदकंदखामोने श्रीमत् जयसेनावार्यको आज्ञा की कि-प्रतिष्ठापाठ बनायो। उसपरसे श्रीमत् जयसेनाचार्य ने यह प्रतिष्ठापाठ दो दिनों बनाया जिससे भगवत्कुदकुंद स्वामीने उनका नाम वसुविंद रखा, वसु माने आठकर्म, बिंदु माने नाश करनेवाला ऐसा वसुबिंदु नामका अर्थ है यह प्रतिष्ठापाठ बहुत प्राचीन है, इसमें शासन देवताका पूजन नहीं हैं, जिससे सर्व दर्शनीक श्रावकोंडूं इस प्रतिष्ठापाठसेहो मन्दिरपतिष्ठा, वेदोपतिष्ठा. मंडपातिष्ठा करानी उचित होगी सबब कि दर्शनीक श्रावक शासनदेवताका पूजन कभी भी करता नहिं ऐसा पंडित आशापरजीने अपने सागारधामृत ग्रंथमें लिखा है आपदाकुलितोपि दर्शनिकः तनित्यर्थम् । शासनदेवतादीन कदाचिदपि न भजते पाक्षिकस्तु भजत्यपि ॥ पंडित आशाधरजोने जो प्रतिष्ठासारोदार लिखा है सो पाक्षिक वाते है जिससे उसमें शासन देवताका पूजन लिखा गया है। शासनदेवता कुदेव हैं। ऐसा पंडित पाशावरजी अपने अनगारवर्मामृत ग्रंथको टोकामें लिखते हैं सो कुदेवताका पूजन दर्शनोक श्रावक कोसे करेगा ? नहिं करेगा। इस प्रतिष्ठापाठके आधारसे प्रतिष्ठा हुई हैं सो नीचे लिखे मुजब१खुरजामें पंडित शेठ मेवारामजीने कराई। २ इन्दोरमें संवत १९७० में ब्रह्मचारी शीलचंदजी जयपुरवाले और पंडित हजारीमलजी बडनगरवालेने कराई। ३ भिंड जिल्हा ग्वालियरमें पंडित शीलचंदजी ब्रह्मचारीजीने तथा और किसी पंडितने कराई। ४ इन्दोर स्टेटके खातेगांवमें पंडित हजारीलालजीने संवत् १९७६ में कराई। वि-18GARIBACCORCHASERDOS - Jain Educati o nal o For Private & Personal Use Only nelibrary.org
SR No.600041
Book TitlePratishthapath Satik
Original Sutra AuthorJaysenacharya
Author
PublisherHirachand Nemchand Doshi Solapur
Publication Year
Total Pages316
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy