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________________ प्रतिष्ठा २२ CHEDALORERAKASHOCALCHARTS इंद्र, शतक्रतु, नेता, विधिकृत, प्राज्ञा देनेवाला, यज्वाको प्रतिनिधि, विद्वान ये शब्द समानार्थक हैं ॥८॥ अशूद्रः संपन्नो विधिबहुविधानानुमिहिरः सुभाग्यो वीर्यादिप्रबलगुणयुतो नरयुवा । मनोज्ञा हार्यस्रक्कनकमणिभूषः शुचिमनाः जिनोत्साहं कर्तुं कृतपरिदृढ़ारंभयजनः ॥८६॥ शूद्रकुल अरु शूद्राचाररहित संपत्तिवान विधिके अनेकप्रकारमें सूर्य अरु सुंदर भाग्यशाली, बलवोर्यादि गुण सम्पन्न, अरू. मनुष्यनिमें युवावस्थाधारी, अरु मनोज्ञ, मनोहर माल्य कनक मणिके भूषणसे भूषित, अरु शुदयनयुक्त अरु जिनेन्द्रका उत्साह करने दृढ चित्तधारी | होय॥८६ यज्ञसूत्रकटिमेखलांगुलिमुद्रिकाकरविभूषणान्वितः। कंठिकावलिसुकुंडलक्षभाशीर्षभूषणयुतः सदा भवेत् ॥ १० ॥ से यज्ञसूत्र यज्ञोपवीत अरु कटिमेखला अरु अंगुलिमुद्रिका अरु करभूषण कहिये कटक इन संयुक्त, अरु कंठिकावलो जो हारावली अरु सुदर कुंडल अरु नक्षत्रमाला, शीर्षभूषण कहिये कर्णपौक्तिक इन संयुक्त सदा ही होय ॥२०॥ त्रिकालसामायिकबंदनेभ्यः स्तुतिक्रियामांसलभावभक्तिः। सोहत्प्रतिष्ठासमये जिनेशविंबं समुद्दिश्य कृतिं विदध्यात् ॥ ११ ॥ अर इंद्र है सो तोनकालमें सामायिक अर वंदना इन जिनेन्द्रको स्तुति करणे करि पुष्ट है भाव भक्ति जाकै, सो अह तकी प्रतिष्ठाका उत्सवमें जिनेन्द्रबिंबकू उद्देशकरि कार्यमात्र विधान करै॥१॥ प्राचार्यचित्तानुगृहीतचेता मनोज्ञवस्त्रः प्रयतः क्रियासु । सद्ब्रह्मभूयं पुरतो विधाय प्राणासनायामविधि प्रयुज्यात् ॥ १२॥ अर सो इंद्र आचार्यका चित्तका अनुग्रहरूप है चित्त जाका, अर मनोज्ञ है वस्त्र जाक, क्रिया जे पंचकल्याणकी क्रिया तिनविषै सावधान, | ऐसा हुवा संता, मंत्र न्यास विधिने प्रथम करि प्राणायाम आसन आदि विधियुक्त करै॥२॥ RECRमरकरुन २२ Jain Educatio n al For Private & Personal use only Jelibrary.org IR
SR No.600041
Book TitlePratishthapath Satik
Original Sutra AuthorJaysenacharya
Author
PublisherHirachand Nemchand Doshi Solapur
Publication Year
Total Pages316
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size17 MB
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