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________________ प्रतिष्ठा 20-AND RECHISARKAHANISARGEORRORY सर्वेभ्यः सुकृतं भविष्यति भवत्तीर्थामृतांभोधरात् । घोरापज्ज्वलनापनोदनमितो भव्यात्मनां जायतां वैराग्यावगमस्त्वया परिचितस्तस्मै नमस्ते पुनः ॥ ८२३ ॥ ॥ हे स्वामिन् ! यात अवार तीन जगतमें प्राप्त भये प्राणोनिकू मांगल्यको पाक्ति होय है अर सर्व प्राणीनिके अर्थिं आप तीर्थरूपी अमृतपेपत कल्याण होसी अर यातें भव्यजीवनिके घोर आपदारूप अनिकी शांति उत्पन्न होय सो वैराग्य भावनाको अवगम तैने परिचय कियो ऐसो | तेरे वास्ते वारंवार नमस्कार होहु ॥८२३॥ संसारदुःखविनिवृत्तिपरायणः स्वयं बुद्ध्वा भवस्थितिमिमां स्वपरात्मनां शिवं । कर्तेत्यसावभिमतस्वनियोगभावुकानस्मान् प्रपंचयति निःक्रमणोत्सवस्तव ॥८२४॥ .. पर स्वामिन् ! या संसारकी स्थितिने जाणि इस संसारका दुःखको निवृत्तिमें सावधान आपही हो। अर स्वपरके कल्याणका कर्ता आप ही हो अर निःक्रमण कहिये दीक्षाको उत्सव तिहारो है सो अनादि वांछित नियोगके भजिवेवारे हम जे हैं तिनिने प्रेरित करै है॥२४॥ के वा वयं त्वदुपदेशविधानदक्षाः स्वायंभवस्य सकलागमपूतदृष्टेः ! आत्मैव केवलमथो प्रतिबुद्धमार्ग नीतः स्वयं न खलु भव्यगणोऽपि तात ।। ८२५॥ अथवा हम तेरे उपदेशके देनेवारे कौन हैं अर तुम स्वयंभू सकल आगमकरि शुद्ध है दृष्टि जिनकी ऐसा तेरा प्रात्मा ही हे तात ! केवल संबोधनका मार्ग नहीं प्राप्त कियो किंतु सकल भव्यगण ही संबोधन मार्ग प्राप्त कियो॥२५॥ अयं पितेयं जननी तवेति लोका मुधार्थ व्यवहारयति। विश्वेशिता विश्वपितामहस्त्वं माताऽसि सर्वप्रतिपालनेच्छुः ॥८२६ ॥ अर लोक व्यवहारका झूठा मागने लेय यह तेरा पिता है अर यह तेरी माता है, ऐसा कहै हैं। तू ही विश्वको स्वामी है, अर विश्वको | पितामह है अर प्रमाणको कर्ता है अर सर्वका पालन उदारको इच्छुक है॥२६॥ -COLOCA USPIC Jain Education anal For Private & Personal Use Only A jinelibrary.org
SR No.600041
Book TitlePratishthapath Satik
Original Sutra AuthorJaysenacharya
Author
PublisherHirachand Nemchand Doshi Solapur
Publication Year
Total Pages316
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size17 MB
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