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________________ B प्रतिष्ठा २५४ ALWACHAARAAto वाग्मी वाचस्पतिः प्राज्ञो गुणरत्नाकरो निधिः। शास्ता सर्वज्ञ ईशानः प्राप्तः सर्वत्रलोचनः ।। ७८५ ॥ __ अतिशय वचनशील हो अर वाणोके स्वामी हो अर प्राज्ञ हो अर गुण रूप रत्ननिका भंडार हो पर शिक्षाका दाता हो अर सर्वज्ञ हो अर हैं। ईश्वर हो अर यथार्थ वक्ता हो अर सर्वत्र देखनेवाले हो ॥७८५॥ कटस्थो निर्विकारोऽस्तिनास्त्यवाच्यगिरांपतिः। स्याद्वादनायका नेता मोक्षमार्गोपदेशकः ॥७८६॥ अर कूटस्थ कहिये तटस्थ हो अर निर्विकार हो अर अस्ति वा नास्ति वा अवाच्य भगनिका पति हो पर स्याद्वादके उपदेशक हो अर प्रणयनकर्ता हो अर मोक्षमार्गका उपदेशक हो ॥७८६ ॥ निरीहः सुगतो भास्वान् लोकालोकविभावसुः । अनंतगुणसंपूज्यो नित्ययज्ञोऽसि विश्वराड् ॥ ७८७ ॥ अर निर्वा छक हो अर सुगत कहिये सुदर ज्ञानवान हो अर कांतिमान हो अर लोकालोक का सूर्य हो पर अनंत गुणकरि पूज्य हो। नित्य यज्ञरूप हो अर विश्वका राजा हो ॥ ७८७ ॥ एवमष्टोत्तरशतां नाम्नां पातु बंधनात् । (?) मोचय स्वात्मसंभूतिं देहि देहि महेश्वर ॥७८८॥ ऐसे नामनिका एक सौ आठ समुदाय मोनै रक्षा करो अर बंधनने छुडावो अर आत्माकी विभूतिने देवो हे परमेश्वर ॥७८८॥ निगलत्प्रेमधारांबुक्षालितांह्रिसरोरुहः । मांगल्यपावनत्वादिलुब्धो विधिनियामकः ।। ७८६ ॥ - R- RHGACHECRECIPES २५४ Jain Education For Private & Personal Use Only 141brary.org
SR No.600041
Book TitlePratishthapath Satik
Original Sutra AuthorJaysenacharya
Author
PublisherHirachand Nemchand Doshi Solapur
Publication Year
Total Pages316
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size17 MB
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