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________________ प्रतिष्ठा २० Jain Educatio अब प्रतिष्ठाका आचार्यका लक्षण कहिये है ional अथ प्रतिष्ठाचार्यलक्षणं । अनूचानः श्रोत्रियश्च प्रतिष्ठाचार्य श्राश्रयः । समावृत्तः प्राडूविवाकः समाचार्यादिनामयुक् ॥८०॥ अनूचान कहिये प्रगसहित प्रवचनका ज्ञाता होय, श्रुतका श्रद्धानी होय सो प्रतिष्ठाचार्य होय अरु आश्रय समावृत्त प्राविवाक समाचारी इत्यादि याके नाम हैं ॥८०॥ स्याद्वादधुर्योऽक्षरदोषवेत्ता निरालसो रोगविहीनदेहः । प्रायः प्रकर्त्ता दमदानशीलो जितेंद्रिया देवगुरुप्रमाणः ॥८१॥ शास्त्रार्थसंपत्तिविदीर्णवादो धर्मोपदेशप्रणयः क्षमावान् । राजादिमान्यो नययोगभाजी तपोत्रतानुष्ठितपूतदेहः ॥ ८२ ॥ पूर्वं निमित्ताद्यनुमापकोऽर्थसंदेहहारी यजनैकचित्तः। ब्राह्मणो ब्रह्मविदां पटिष्ठो जिनैकधर्मा गुरुदत्तमंत्रः ॥ ८३ ॥ भुक्त्वा हविष्यान्नमरात्रिभोजी निद्रां विजेतुं विहितोद्यमश्च । गतस्पृहो भक्तिपरात्मदुःखप्रहारणये सिद्धमनुर्विधिज्ञः ॥ ८४ ॥ कुल मापातसुविद्यया यः प्राप्तोपसर्ग परिह तुमीशः । सोऽयं प्रतिष्ठाविधिषु प्रयोक्ता श्लाघ्योऽन्यथा दोषवती प्रतिष्ठा ॥ ८५ ॥ अरु स्याद्वाद विद्यामें प्रवीण अरु अक्षरका उदात्त अनुदात्तादि दोषने जाननेवाला होय, आलस्यहीन, रोगरहित होय, बहुप्रकार क्रिया For Private & Personal Use Only पाठ २० nelibrary.org
SR No.600041
Book TitlePratishthapath Satik
Original Sutra AuthorJaysenacharya
Author
PublisherHirachand Nemchand Doshi Solapur
Publication Year
Total Pages316
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size17 MB
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