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________________ प्रतिष्ठा १६ Jain Educatio द्यूतव्यवस्योपजनस्थसीधुकृषीबलाद्यर्जनमल वर्ज्यं ॥ ७५ ॥ निषाद कहिये नीच कर्मकर्ता भीलादिक नाडींधम सुनार भेरू चंडिकाका पूजक अरु चोर अरु स्त्रीका व्यभिचार कराय धन पैदा करनेवाला अरु ज्वारी व्यसनी रौद्रकर्म मदरा खेतीवाला आदिका द्रव्य इहां वर्जित है ॥७५॥ परोपदानी किल संघपिंजो भूपार्थिनिर्माल्यधनप्रहर्त्ता । न शस्यते क्वापि महोपयोगं कर्तुं जनस्तद्घृतहेमभोक्ता ॥७६॥ पर धन लगा अपना विख्यातपना करै सो अरु संघका निंदक राज्यका द्रव्यहर्ता निर्माल्य धनका हर्ता इत्यादिक: सो कदापि महायज्ञ आदि करने योग्य नाहीं होय है तथा इनका धन लेनेवाला भी योग्य नाहीं है ॥७६॥ न्यायोपजीवी गुरुभक्तिधारी कुत्सादिहीनो विनयप्रपन्नः । विप्रस्तथा क्षत्रियवैश्यवर्गो व्रतक्रियाबंदनशीलपालः ॥ ७७ ॥ श्रद्धालुदातृत्वमहेच्छुभावो ज्ञाता श्रुतार्थस्य कषायहीनः । कलंकपंकोन्मदतापवादकुकर्मदृरोऽर्हदुदारबुद्धिः ॥ ७८ ॥ तो कौन कौन हैं सो कहिये है — न्यायमार्ग जीविका वाला, गुरुकी भक्ति कर्ता, निंदादिक हीन, विनयवान्, ब्राह्मण, क्षत्रिय, वा वैश्यवर्गी, व्रत क्रिया वंदन आदिमें सावधान अरु शीलका पात्र ॥७७॥ अरु श्रद्धावान्, दातृत्व गुणवान्, महान कार्यका इच्छुक, अरु शास्त्रका ज्ञाता होय अरु कषायकरि हीन, कलंकपंक जाकै पूर्व नाहीं लाग्या होय, उन्मादता अपवाद अरु कुकर्म इनसे दूर होय अरु अहत धर्ममें उदार बुद्धि ऐसा प्रतिष्ठापक होय ॥७८॥ (यो युग्म है ) यज्वा तु याजको यष्टा पूजको यजमानभाक् । षट्कर्मा यागकृत् संघीत्यादिनाम्ना प्रयुज्यते ॥ ७६ ॥ यज्वा, याजक, यष्टा, पूजक, यजमान, षट्कर्मा, यागकृत, संघी इयादि प्रतिष्ठापकका पर्याय शब्द है ॥ ७६ ॥ onal For Private & Personal Use Only पाठ १६ analibrary.org
SR No.600041
Book TitlePratishthapath Satik
Original Sutra AuthorJaysenacharya
Author
PublisherHirachand Nemchand Doshi Solapur
Publication Year
Total Pages316
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size17 MB
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