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प्रतिष्ठा
CR%A4पना
सद्गंधैरनुलिप्य मूर्ध्नि मुकुटं चूडामणि कौशिके
भाले सत्तिलकं श्रुतौ मणिचिते सत्कुंडले लंबिकां । मुक्तावल्यथ कंठिकां गलतटेष्वावापकंश्चागदः
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केयूरं भुजयोः पदोस्तु कटके मंजीरयुग्मादिका
श्राभूषाः परिधापने नवमहामूले सुरेंद्रालयात् । आनीतानि दधाति न क्षितिभवानींद्रप्रियेत्यादरा
दाविर्भूतमतिर्नतोत्तमतनुभूषां चकार स्वयं ॥ ७७१ ॥ बहुरि सो इंद्राणी भगवानका शरीरनै समीचीन चंदन करि लिंपन करि मस्तकमें तो मुकुटनै अर केशपाशमें चडामणि रत्नने र ललाटमें तिलकने अर कणेमें मणिजडित कुंडलने अर गलभागमें लंबिका नाम हारने योतीनिकी मालाने अर भुजमें बाज बंधने अंगद नाम भूषणने पर हस्तनिमें कंकणने अर कटिमें मेखलाने पर भुजनिमें केयूरने अर चरणनिमें कटकने पर मंजीरयुग्म भूषणने, भर पहरवा | वास्तै वस्त्र नवीन नवीन बहुमौल्य दुपट्टा धोवतो आदि देवोपनो ल्याये ही धारण करावती भई अरू पृथ्वीमें उत्पन्न भये तिनकू नहीं | करावती भई । वा इंद्राणी आदरयुक्त बुद्धिमती अर नम्र है मस्तक जाका ऐसो विभूषित करती भई ॥७०-७१ ॥
यस्यांगद्युतिभिः सुकोटिदिनकृद्भासापिंधानं धृतं
लावण्येन तु कोटिदर्पककथा वीर्येण विश्वांगिनां । सारं सौख्यभुवेंद्रकोटितुलनाधिक्कारमारोपिता
तद्रूपं मुहुरीक्षितः ऋतुभुजः किं किं न कृत्यं व्यभात् ॥ ७७२ ॥
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