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________________ प्रतिष्ठा २४० % T-KOKGANGACANC5 भर मणि करि समस्त प्राकाशमें प्रकाशयुक्त अर प्रभुका सेवन वास्त हो स्वगसें मानू आया ऐसा खगका विपानने देखत भई। भर पृथ्वीका हृदयतें निकस्यो अर भुवनपति जिनेंद्रका दर्शनमें ही मानू उत्साहवान ऐसा धरणींद्रका भवनने देखत भई ॥७३७॥ दारिद्रदुःखविनिपातनहेतुभूतं राशिं सुरत्ननिचयस्य लसंतमुच्चैः। निधूमतोज्ज्वलदमेयशिखं कृशानुं मूर्ते खकर्मदहनाय कृतावतारं ॥ ७३८ ॥ अर दारिद्रका अर दुःखका दूर करणेमें कारणभूत अर उच्च प्रकार देदोप्यमान ऐसो रत्ननिको राशिने देखत भई अर निधू मतायुक्त हूँ उज्ज्वल है अप्रमाण शिखा जाको अर अपना कर्मनिका दहन वास्ते ही किया है अवतार जाने ऐसा अग्निने देखत भई ॥ ७३८ ॥ दृष्ट्वा नितांतशुभदायतिगान् सुखोत्थान् स्वप्नान् प्रभातसमये प्रतिबुद्ध एव । मांगल्यतूर्यविनिबोधितयोग्यकाले तिष्ठेत्सखीजनविवृद्धसुखप्रचारा ॥ ७३६ ॥ ऐस या प्रकार पोडश स्वप्नने नितांत शुभ देने वारा है उत्तरकाल जिनका अर मुखकरि उठे तिनिदेखकरि प्रभात समयमें जागतो माता मंगलकारि वादित्रनिका शब्दकरि योग्य समयमें सखी जनादि परिचारिकानिकरि सुखकू फैलावतो संती उठती भई ॥३६॥ एवं विधातृकल्पोपक ठे आचार्ययज्ञानौ सपागत्य तदृष्यस्वप्नानां पृथक पृथक्तया फलानि निवेदयित्वा षोडशमात्रये उत्तरयेतां सापि तानि श्रुत्वाऽऽत्पान धन्यां मन्वाना श्रयादिषु दत्तादरा स्यात् । ___ या प्रकार माता समान कल्पित माता पास यजमान तथा प्राचार्य प्राय अनुक्रमरि स्वनका फल निवेदन करते षोडश फल माताके | अग्र उतारै तथा तो माता भी अपना आत्माने धन्य मानि श्री हो आदि कुमारिकाको तरफ आदरपूर्वक दृष्टि देव । POURCECORPRECOBARELECRECROPEDIASIS - %9CASS Jain Educatio il reatonal For Private & Personal Use Only Ma library.org |
SR No.600041
Book TitlePratishthapath Satik
Original Sutra AuthorJaysenacharya
Author
PublisherHirachand Nemchand Doshi Solapur
Publication Year
Total Pages316
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size17 MB
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