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अथ मातुःस्वप्नारोपणं । तथाहिअब माताकू स्वप्न आधै ताका वर्णन कहिये है
सौधांतरुद्यन्मणिदीपकाद्युतिविद्योतिशय्याभवनाग्रभूमिषु ।
चित्राणि लेख्यानि पृथक् पृथक् स्थितान्यादृश्यमाना जननी स्वपां क्रियात् ॥ ७३०॥ महलमें देदीप्यमान रत्नके दीपकनिकी ध तिकरि प्रकाशित शय्यागृहनिकी अग्रभूमिमें न्यारे न्यारे चित्र स्वप्नके माता दीखते रखि माता शयन कर ॥७३०॥
तानि कानीत्यत आह
ते स्वप्न कौन कौन हैं सो कहिये है-- आपांडुरद्युतिमुदंचितपीवरोरुस्कंधं गवेंद्रमुरुमंजुलमंद्रघोष ।
ऐरावतं द्विपपतिं त्रिमदश्रवंतं मंद्रार्द्रगर्जितमुरुप्रबलांगयष्टिं ॥७३१॥ प्रथम ही पांडरकांति पर उन्नत पृष्ट स्कंधयुक्त पर दीर्घ मधुर शब्द करता पर नवीन शोभायमान ऐसा बैलने देखत भई तथा तीन * स्थानमें कपोल कुंभस्थल ग्रोवामें पद भरती अर मंद्र गर्जनायुक्त ऐसा ऐरावत नामक हाथोने देखत भई ॥ ७३१ ॥
पंचास्यमिदुनिभदेहसटावितानभास्वंतमुद्यदभिभासि विवश्वदंगे।
पद्मासनाश्रयहरिस्थितिदोलयंतीं पद्मां हिरण्मयनिपैः स्नपितामुदारां ॥७३२॥ चंद्रमासमान धवल स्कंधके केशराली समूहकरि भासमान पर उदयरूप कांतियुक्त शोभित शरीर ऐसा सिंहने देखत भई पर कपलका || सरोवरमें सिंहासन पर बैठी झलती सुवर्णके कलशनिकरि स्नान करती ऐसो युवान लक्ष्योने देखत भई ॥७३२ ॥
पुष्पस्रजौ कुसुमगंधविलुब्धभंगे उत्तानसंस्थितियुजौ नवसत्पुनीते।
RANSARA
ऊन
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