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प्रतिष्ठा
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अथ पंचकल्याणस्तोत्रम् । अब यहां पंचकल्याण स्तोत्र पाठ पढिये है सो ऐसा
यद्गर्भावतरात्पुरः सुरपतिः संतोषयन् भूतलं
दीनानाथजनांश्च दुःखदवतो निर्घाट्य हर्ष ददन् । षण्मासात्पुरतः परत्र नवसु स्वर्ण समावर्षयन्
श्रीह्रीमुख्यकुमारिकाः प्रणियुजन् यस्यास्ति सेवापरः ॥ ७२४ ॥ पर जिस जिनेश्वरके गर्भ में अवतारके पहिली ही सर्व भूतलने संतोषित करतो अर दुःखरूप दावानलसे दीन अनाथ जनने दूर करतो इंद्र है सो छह महोना पहिलो अर नवमास पीछे ताई रत्नवर्षाने त्रिकाल करतो अर श्रयादि कुमारिकान यथानियोग गर्भशोधनाथ योजन करतो इंद्र सेवामें तत्पर होतो भयो सो भगवान् जय ते रहो । ७२४ ॥
स्वर्गानेकपमाधिरोह्य सदनाद्राज्ञः सुमेरुस्थल
नीत्वा दुग्धपयोधिसंभृतनिपैः स्नानं चकारेंद्रराट् । यत्स्तोत्रं सुविधातुमास्यमकरोत्साहस्रसंख्यं तथा
नृत्यप्रांगणसंगतस्तु वपुषं स त्वं जिनेंद्रःप्रभः॥ ७२५॥ अरु इंद्र ही जाकूराजाका गृह प्रांगणसें ऐरावत हस्तीपर आरोहण कराय सुमेरु पर्वत पर ले जाय अर तहां तोरसमुद्रके जल भरे 8 कलशनि करि स्नान करातो भयो अर जाका स्तोत्र करवेकू इंद्र अपणा मुख हजार संख्यावाले करतो भयो पर नृत्य अंगणमें प्राप्त भयो इंद्र हजार शरीर रचतो भयो सो तू जिनेंद्र स्वामी जयवान हो ॥ ७२५॥
किंचिद्धेतुविलंभनादिह गतं साम्राज्यसौख्यं तृण
KAREEKECIRCTORRETHORERNET
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