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________________ प्रतिष्ठा १७६ SIDHA AROCEECI-UPERTREAMINGER वीर्येशभूमीरुहपुष्पमिंद्रसल्लांछनं पुंडरपृस्तिरीटं । विशालमीशं विजयाप्रसूतमर्चामि तद्ध्यानपरायणोऽहं ॥ ५५ ॥ वीर्य नाम राजाका पुत्र अरु द्रको है चिद जाकै अरु पुंडरीकिणी नगरीका मुकुट अरु विशाल ईश अर विजयायाताका पुत्र असा विशालप्रभ तीर्थ करनै ताका ध्यानमै तत्पर हुआ मैं पूजू हूँ॥५५४॥ __ओं ही विशालमभजिनायाघम् । सरस्वतीपद्मरथांगजातं शंखांकमुच्चैः श्रियमीशितारं । संमान्य तं वजधरं जिनेंद्रं जलाक्षतैरर्चितमुत्करोमि ॥ ५५५॥ बहुरि सरस्वती नाम राणी अरु पद्मरथ नामक राजाका पुत्र अरु शंखका है चिन्ह जाकै अरु उच्च लक्ष्मीका स्वामी असा वज्रधर जिनेंद्रने सन्मानकरि जल अक्षतनिकरि पूजित करू हूँ॥५५५॥ ओं हीं वज्रधरजिनायाघम् । वाल्मीकवंशांबुधिशीतरश्मि दयावतीमातृकमक्यगावं । सत्पुंडरीकिण्यवनं जिनेंद्र चंद्राननं पूजयताजलाद्यैः ॥ ५५६॥ वाल्पीकवंशरूपी समुद्रका वर्धनहेतु चंद्रमासमान अरु दयावती माताका पुत्र अरु गोका है अंक जाके अरु पुंडरीकिनी नगराका पालक, असा चंद्रानन जिनेंद्रने जलादिकरि पूजो॥५५६ ॥ ओं ही चंद्राननजिनायाघम् । श्रीरेणुकामातृकमजचिह्न देवेशमुस्पुत्रमुदारभाव । श्रीचंद्रबाहुं जिनमर्चयामि कृतुप्रयोगे विधिना प्रणम्य ॥ ५५७ ॥ ADSHAHRORSCIENCE RNMorary.org ___Jain Educationalhan For Private & Personal Use Only
SR No.600041
Book TitlePratishthapath Satik
Original Sutra AuthorJaysenacharya
Author
PublisherHirachand Nemchand Doshi Solapur
Publication Year
Total Pages316
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size17 MB
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