________________
प्रतिष्ठा
5-NCRECALCRECE
अब प्रतिष्ठामें इतने मनुष्य अवश्य अधिकारी चाहिये सो कहे हैप्राचार्यो मघवा कर्ता तत्पत्नी पूजकस्तथा।
पञ्चैते यज्ञनेतारो मुख्या व्रतसमन्विताः ॥ ५२॥ आचार्य मूरि मंत्रका दातार १ इंद्र क्रियाका कर्ता २ यज्ञका कर्ता यजमान ३ ताकी स्त्री विवाहिता.४ पूजनका कर्ता ५ ये पांच मनुष्य यज्ञ का कर्ता व्रतधारी जानना ॥५२॥
सामग्रीसम्पत्तिकरा मंत्रिणोऽध्यापका बुधाः। श्रीह्यादिकन्यका लौकांतिककल्पा अपि स्मृताः ॥ ५ ॥
इति कर्तृसूचनिका।। सामिग्री संपादन करनेवाला १ मन्त्री सभासद २ अध्यापक पाठवक्ता ३ पंडित विधिका जाननेवाला ४ श्री ही आदि कन्या ५ लोकांतिक देव ६ भी आवश्यक हो हैं॥५३॥
भैस कर्ता-करनेवालेनिकी सूचनिका कही।
%BCCIASRe७
अथ उपोद्घातः। श्राद्यश्चकूधरः समस्तवसुधासारं स्वसात्कृत्य तत्सारं मंचितुमीड्यमादिपुरुषं ब्रह्माणमीशं जिनं। नत्वा पर्यनुयुक्त देव ! भगवन् ! सागारधर्मे श्रुतामियां दत्तिमनाविलां बहुधनप्रा. निबोधस्व मे ॥ ५४॥ __ अब प्रथम उपोद्धात कहिये है कि-प्रथम भरतेश्वर चक्रवर्ती समस्त पृथ्यवीका सार जो चतुर्दश रत्न, नवनिधि अरु दिग्विजयादि अपने हस्तगत करि ताका भी सार पुण्यने संचय करने पूज्य आदिब्रह्मा आदि जिनेन्द्र श्वर तीर्थकरने नमस्कार करि पूछता भया कि हे देव कि हे भगवान् श्रावकधर्ममें श्रवण कियी ऐसी इज्या अर्थात् पूजा निःपापा अरु बहुत धनकरि होवे योग्य ऐसी दत्ति कहिये दानविधि जो है ताकू मेरे अर्थि निबोधन करो कि आज्ञा करो॥५४॥
Jain Educati
WATolibrary.org
For Private & Personal Use Only
o nal