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________________ P FORC || पार H RECARROREGARCANCELECSS3453633 काशीदेशमें वाराणसी नाम नगरीको स्वामी राजानिने भूपण ऐसा विश्वसेन राजाको नेत्रपिय पुत्र अरु कपठ नाप वैरीको शठपणो कि मूद पणो ताका खंडन करनेवारो अरु पद्मावतो अर धरणद्र आदि देवनि करि पूजनका चिह प्राप्त ऐसा पाच नाथ जिनेंद्रनै शिर करि बंद। पूजू हूं ॥१७॥ ओं ही पार्श्व जिनायाघम् । सिद्धार्थभूपतिगणेन पुरस्क्रियायामानंदतांडवविधौ स्वजनुः शशंसे । श्रीश्रेणिकेन सदसि ध्रुवभूपदाप्त्यै यज्ञेऽर्चयामि वरवीरजिनेंद्रमस्मिन् ॥ ५१८॥ सिद्धार्थ नामा राजा प्रमुखनै अपनी सस्क्रियामै आनंद तांडव विष अपना जन्म प्रशंसित किया अरु राजा श्रेणिकने समवसरण सभाम है| निश्चल पदकी प्राप्ति अर्थि, वीर जिनेंद्रनै इस यज्ञमें पूजू हूँ॥ ५१८॥ ओं ह्रीं वधमानजिनेंद्राया निवपायीति स्वाहा । अत्राहूतसुपर्वपर्वनिकरे विंबप्रतिष्ठोत्सवे संपूज्याश्चतुरुत्तरा जिनवरा विंशप्रमाः संप्रति । संजाग्रत्समयादयैकसुकृतानुद्धार्य मोक्षं गता स्तेऽत्रागत्य समस्तमध्वरकृतं गृह्णतु पूजाविधिं ॥ ५१६ ॥ इहा आह्वान किये देवनिका निकाय विषे ऐसा विवपतिष्ठाका उत्सवमै संजित चोवीस वर्तमान तीर्थंकर प्रगट है समय जिनका ऐसा दयाभावबारे सुकृत पुरुषनिफू उद्घारि मोक्षमाप्त भये ते सर्व इहां यज्ञकन समस्त पूजाको विधिने ग्रहण करो॥१६॥ ओं ह्रीं यागमंडलमें मुख्य तोसरा वलय स्थापित चतुर्वंशति वर्तमान जिनके अथि पूजाका अर्घ देना। ओं ह्रीं अस्मिन् यागमंडले पख मुख्यार्चिततृतीयालयोन्मुद्रितवर्तमानवशतिजिनेभ्यः पूर्णाघम् ॥ AEONECHARACHAR Jain Educati o nal For Private & Personal Use Only Wirelibrary.org
SR No.600041
Book TitlePratishthapath Satik
Original Sutra AuthorJaysenacharya
Author
PublisherHirachand Nemchand Doshi Solapur
Publication Year
Total Pages316
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size17 MB
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