SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 172
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रतिष्ठा १६६ Jain Education श्रीमान हस्तिनापुरको स्वामी विश्वसेन राजा अपना गोदमैं' स्थापन करि पुत्रका अमृत पुष्टि करि तुष्ट हुवो अरु पेरा नाम राखी भी कुरुवंशका निधानकी भूमि जातें होती भई, ता शांतिनाथनें मैं इहां आश्रित करू हूँ ॥ ५१० ॥ ओं हों शांतिजिनाय प्रघम् । श्रीकुंथुनाथजिनजन्मनिषटूनिकायजीवाः सुखं निरुपमं बुभुजुर्विशंकं । किं नाम तत्स्मृतिनिराकुलमानसोऽहं दवे न सत्त्वरमतोऽचैनमारभेय ॥ ५११ ॥ श्रीमान् कुंथुनाथ जिनेंद्रका जन्म मैं छहकायके सर्वजीव सर्व ही सुखनें निःशंक प्राप्त हुये तो ताका स्मरण करि निराकुलचिचवारो मैं हूँ सो क्यूं नहीं सुखभोगू गो यात शीघ्र ही पूजन आरंभ करू हू ॥ ५५१ ॥ ह्रीं कुंथुनाथजिनायार्घम् । सद्दर्शनप्लुतसुदर्शनभूपपुत्रं त्रैलोक्यजीत्रवररक्षणहेतुमित्रम् । श्री मित्रसेनजननीखनिरत्नमचे श्रीपुष्प चिह्नमरनाथजिनेंद्रमर्थ्यम् ॥ ५१२ ॥ क्षायिक सम्यक्त्व करि पवित्र सुदर्शन राजाका पुत्र अरू तीनलोकका जीवांकी रक्षाका कारणभूत मित्र अरु मित्रसेना माता रूप खानि को रत्नभूत अरु पुष्पको है चिह्न जाऊँ अरु प्रार्थनीक अरनाथ जिनेंद्र ने पूजूं हूं ॥ ५१२ ॥ नों ह्रीं अरनाथजिनेंद्राय अर्धम् । कुंभोद्भवं धरणिदुःखहरं प्रजावत्यानंदकारकमतंद्रमुनींद्रसेव्यं । श्रीमल्लिनाथविभुमध्वरविघ्नशांत्यै संपूजये जलसुचंदनपुष्पदीपैः ॥ ५१३ ॥ कुंभराजासे उत्पन्न धरणिनाम माता तथा पृथ्वीका दुख हरवावारो तथा प्रजावतीकू' आनंदकरता अरु निरालस्य मुनींद्रकरि सेवनीक ऐसा मल्लिनाथ जिनने इस यज्ञका विघ्नकी शांति अर्थ जल चंदन पुष्प दीपनिकरि पूजू हू ॥ ५१३ ॥ ओं ह्रीं मल्लिजिनायार्धम् । For Private & Personal Use Only पाठ १६६ library.org
SR No.600041
Book TitlePratishthapath Satik
Original Sutra AuthorJaysenacharya
Author
PublisherHirachand Nemchand Doshi Solapur
Publication Year
Total Pages316
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy