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कोपिल्यनाथकृतवर्मगृहावतारं श्यामाजयाहजननीसुखदं नमामि ।
पाठ कोलध्वजं विमलमीश्वरमध्वरेऽस्मिन्नर्चे द्विरुक्तमलहापनकर्मसिद्धये ॥ ५०७॥ कंपिलानगरीका नाथ कृतवर्मा नापक राजाक कियो है अवतार जाने अरु श्यामा नाम माता तानं सुखनं देवावारो, कोल कहिये शूकर चिह-युक्त ऐसा विमल जिनेंद्रने या यज्ञमैं द्विपकार करि द्रव्यपल अह भावमल कर्म ताका दुरि करवावारान कार्यकी सिद्धि अर्थि पूज हूँ॥५०७॥
ओ ही विमलनाथजिनयाघम् । साकेतनायकनृपस्य च सिंहसेननाम्नस्तनूजममरार्चितपादपदमं ।
संपूजयामि विविधाहणवा ह्यनंतनाथं चतुर्दशजिनं सलिलाक्षतौवैः ॥ ५.८ ॥ अयोध्या नगरीका नायक सिंहलेन नाम राजाका पुत्र अरु देवन करि पूजित चरण कमल जाका, ऐसा अनंतनाथ चतुर्दशप जिनेंद्रनें जल AR चंदनादि नाना विध पूजन करि सम्यक् पूजू हूं ॥५०८॥
ओं ही अनंतजिनायार्घ म्। धर्म द्विधोपदिशता सदसींद्रधार्ये किं किं न नाम जनताहितमन्वदर्शि ।
श्रीधर्मनाथ ! भवतेति सदर्थनाम प्राप्तयेऽर्वनविधि पुरतः करोनि ॥ ५०६ ॥ दोय प्रकार श्रावक अर मुनिधर्म समवशरण सभामै उपदेश करता जिननें कहा कहा प्राणीनका निश्चय करि नहीं दिखायो ? सो हे धर्म5|| नाथ जिनेंद्र ! तुप सार्थकनाप हो अरु याही अर्थकी प्राप्तिके अर्थि तेरे अग्र पूजा विधिनैं करूं हूँ॥५०६॥
ों ही धर्म नाथजिनायाम् । श्रीहस्तिनागपुरपालकविश्वसेनः स्वांके निवेश्य तनयामृतपुष्टितुष्टः ऐराऽपि सा सुकुरुवंशनिधानभूमिर्यस्माद् बभूव जिनशांतिमिहाश्रयामि ॥ ५१०॥
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