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________________ क्षेत्रनामादिमोवर्णा यत्र कोष्ठे भवेत्ततः ॥४॥ उपविश्य जपं कुर्यात् नान्यस्मिन् दुःखदेस्थले। आत्मध्यानं जपं कुर्य्यादुपांशुर्वाथमानसम् ॥ ५ ॥७ इति कूर्यचक्रशोधनविधिः। अब कूम का शोधन करि वहां बैठि जप करें सो ग्रंथांतरसें कहिये हैं। तोयकी भूमिका नव विभाग करि नव कोष्टम सप्त वर्गान लिखें अरु मध्यमं लक्ष अरु स्वरांने लिखै। तहां क्षेत्रको आदिको वर्ण जिस कोष्टमै होय, तहां बेठि जप कर। मध्याह पहलो जपका पारभ कर, स्पष्टोच्चारण अथवा मानस जप करे। ___ अन्य ग्रंथनमैं,-कहा भी है स्त्रीका शूद्रका स्पश अरु भाषण अरू निंदा करना अरुतांबूल चर्वण तथा शयन दिन अरु दानका लेना अरु नृत्य गान अरु कुटिलता इनकू सदा वर्जन करना । अरु देवताको त्रिकाल पूना स्तुति अरु विश्वासका रखना। ऐसे प्रतिदिन करि न्यूनाधिकता दोषकू परिहार करें। अथ यंत्रः। लक्ष क ख ग घ ङ च छ ज झब अं अः अ भा इई शप सह ओ औ उऊ ट ठ ड ढ ण । ए ऐ लल ऋ ऋ य रलव - पफवभय त थ द धन *इन श्लोकोंकी भाषा मूलप्रति में नहीं मिली। Jain Educatio n al For Private & Personal Use Only 18Ubrary.org
SR No.600041
Book TitlePratishthapath Satik
Original Sutra AuthorJaysenacharya
Author
PublisherHirachand Nemchand Doshi Solapur
Publication Year
Total Pages316
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size17 MB
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