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प्रतिष्ठा
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अथ न्यासः। अब न्यास कहिये हैं
पूर्वयाचार्यसिद्धश्रुतचारित्रभक्तिपाठाः कर्तव्याः कायोत्सर्गसमालोचनं च कृत्वा । ओं हां गयोअरहताणं, हां अंगुष्ठाभ्यां नमः। ओं ह्रीं गयो सिद्धाणं, ही तर्जनीभ्यां नमः । ओ हणमो इरीयाणं, हमध्यमाभ्यां नमः। ओं होणपो उवज्झायाणं, ह्रौं अनामिकाभ्यां नमः । ओं हः णमो लोए सव्वसाहूणं, ह्रः कनिष्ठिकाभ्यां नमः । ओं हां ह्रीं ह्रौं हः करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः । ओं हीं णमो अरहंताणं हां मम शीष रक्ष रक्ष स्वाहा । ओं ही णमो सिद्धाणं ह्रीं मम वदनं रक्ष रक्ष स्वाहा । ओ हणमो आइरीयाणं इ. हृदयं मप रक्ष रक्ष स्वाहा । ओं ह्रौं णमो उक्झायाणं ह्रौं मम नाभिं रक्ष रक्ष स्वाहा। ओं इः णमो लोए सव्वसाहूणं हः मम पादौ रक्ष रक्ष स्वाहा । ओं हां णमो अरहताणं हां एवंदिशात आगतविघ्नान् निवारय निवारय मां रक्ष रक्ष स्वाहा। ओं ह्रीं णमो सिद्धाणं हों दक्षिणदिशात आगतविघ्नान निवारय निवारय मां रक्ष रक्ष स्वाहा। ओ हणमो आइरीयाणं ह पश्चिमदिशात आगतविघ्नान निवारय निवारय मां रक्ष रक्ष स्वाहा । ओं ह्रौं णमो उवज्मायाणं ह्रौं उत्तरदिशात आगतविघ्नान निवारय निवारय मां रक्ष रक्ष स्वाहा। ओं हः गायो लोए सव्वसाहणं ः सर्वदिशात आगतविघ्नान् निवारय निवारय मां रक्ष रक्ष स्वाहा । ओं हां गामो अरहताणं हां मां रक्ष रक्ष स्वाहा । ओं हीं णमो सिद्धाणं ही मय वन रक्ष रक्ष स्वाहा। | ओं ह, मो आइरियाणं हूँ मम पूजाद्रव्यं रक्ष रक्ष स्वाहा। ओं ह्रौं णमो उवझायाणं ह्रौं मम स्थलं रक्ष रक्ष स्वाहा । प्रों हः णमो लोए सब्बसाहूणं हः सर्वं जगत रक्ष रक्ष स्वाहा । क्षांक्षी तूं क्षौं क्षः सर्वदिशासु हां हां ह हौं हः सर्वदिशासु ओं ही अमृते अमृतोद्भवे अमृतबर्षिणि अमृतं श्रावय श्रावय सं सं क्ली क्लीं ब्लू ब्लूद्रां द्रीं द्रीं द्रावय द्रावय ठः ठः ह्रीं स्वाहा ॥
इति चुलुकोदकं मंत्रयित्वा शिरः परिषेचनं ॥ पहली प्राचार्य, सिद्ध, श्रुत , चारित्रभक्ति पाठ करने योग्य है; फिरि कायोत्सर्ग. समालोचन करै। प्रथम अरहंतकूनमस्कार करि अंगुष्ठ, शुद्धि करै, फिरि सिद्धांका मंत्रांकरि तर्जनी अंगुलीकी शुद्धि करै, फिरि आचार्यनका नमस्कार मंत्र पदि मध्यमा अंगुलीकू शुद्ध कर, फिर उपाध्याय-मंत्र करि अनामिका अंगुलीकू तथा साधु-मंत्रका उच्चारण करि कनिष्ठा अंगुलीकू शुद्ध करे। अर सकल मंत्र करि अपने हाथ अरु तलभागका शोधन कर । सर्व क्रिया हस्तसें होय है तातें हस्तशुद्धि कही ऐसे ही शिर, वदन, हृदय, नाभि, पादनकू शुद्ध करे। फिरि दिशा-शुद्धि मत्र पढे । फिर शरीरकू, वस्त्रनकू, पूजा-द्रव्यनकू, बैठनेके स्थानकू, तथा सर्व दृश्यमान जगत्कू शुद्ध करै । 'क्षा आदि पंच बीजनतें सर्व दिशा. द्वितीय 'हां' आदि मंत्रनत शुद्ध करै। आगें ॐ ह्रीं' आदि अमृत मंत्र करि अपना दक्षिण हस्तकी अंजुली पवित्र जल करि अपना मस्तक परि सींच।
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