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________________ प्रतिष्ठा १०५ Jain Education बहुरि - हे कुबेर ! ह समवसरणका चित्रकार ! तुम वेद-मंत्रन करि माणिक्य मणि अरु तांडा नामक मणिका चूर्णने हस्त ग्रहण करि जिनेंद्रका विबकी प्रतिष्ठा यज्ञ में मंडलनें लिखि देवनका गण कृतकृत्य होउ ॥ ३३६ ॥ रक्तचूर्णस्थापनं ॥ गारुत्मताश्म शिखिकंठमारीप्रवाहजातः सुकौशलकृता हृदयापहारी । चूर्णोलिपक्षसमतामुपनीय यक्षराजेन मंडलविधौ विनियोक्तुमिष्टः ॥ ३३७ ॥ बहुरि नीलकंठ मणि अरु मयूरकंठ मणिका प्रवाहमें उत्पन्न भयौ ऐसा चतुराई करनेहारेनका हृदयकू' हरणेवारो चूर्ण है सो भ्रमर - पक्षकी समानता प्राप्त होय कुवेरनैं मंडलका विधान में विनियोग करनेकू इष्ट किया है ॥ ३३७ ॥ कृष्णचूर्णस्थापनं ॥ वेदकाच्या स्थापन करै ॥ ३३८ ॥ nal कोणेषु वेद्याश्चतुरस्रदेशे संस्थाप्य गाढं घनघातयोगात् । सीरकान् शंकुवदासितांश्च काष्ठाविमूढीं शिथिलीकरोतु ॥ ३३८ ॥ कोणा गाढ़ा घणकी चोटतें समीचीन कीलां समान हीरानें स्थापित करि दिग - मूढता निवारण करौ । ऐसें हीरक इति वेद्याः कोणे हीरक स्थापन ॥ ऐसें पृथक् पृथक् मं ंत्र पढ़ि करि पंच वर्णका चूर्ण कू स्थापन करे श्ररु मंडल लिखै ॥ आर्गै अन्य विधि कहिये हैं,— स्थाने स्थाने संनिवेश्याः पताका लघ्वः स्थूला उन्नतांशा महोर्व्याम् । वादिलाणां नादपूर्वं वरस्त्रीगीतध्वानैमंगलार्थैरनूनैः ॥ ३३६ ॥ बहुरि ठिक ठिका मंगल अर्थ करावना ॥ छोटी बावडी ध्वजा ऊंची स्थापन करनी, अरु यज्ञभूमिमें वादिनका शब्द- पूर्वक बहुत सुन्दर स्त्रियोंका गीत-गान ३३६ ॥ इति वेद्यग्रभूमौ च वेदपरितो लघुपताका स्थापनं ॥ ऐसें वेदीकी अग्रभूमि तथा चहुओर छोटी ध्वजा स्थापन करनी । अब मंगल-कलसका स्थापन कहिये हैं,— १४ For Private & Personal Use Only 1% 16 पाठ ०५ brary.org
SR No.600041
Book TitlePratishthapath Satik
Original Sutra AuthorJaysenacharya
Author
PublisherHirachand Nemchand Doshi Solapur
Publication Year
Total Pages316
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size17 MB
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