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________________ सहित वैराग्यतेमणे करीने शोभायमान एवं, एटलें अखंडित मनोहर पांच इंद्रियोए करीने रूप सौभाग्यादि गुणोने अनुभवीने | JE/ भाषांतर शतकम् RAJE एटले भोगवीने परिणत वयषालो थइने एटले परिपक्क अवस्थावालो थइने पछी प्रव्रज्या ग्रहण करजे." खार पछी ||:// ते कुमार फरीने आ प्रकारे कहेतो हवो. "हे अंब ! हे तात ! जे तमे शरीरनुं स्वरूप का, ते मनुष्य संबंधि शरीर, खलु कहेतां निश्चे दुःखज स्थानक छे, अने नाना प्रकारनी सेंकडो व्याधिओने रहेवावें घर ए, अने हाडका रूप bal | लाकडांथी उत्पन्न थएवं एy, अने नसाजाले करीने विंटाएलं एवं, अने माटीना भांडनी पेठे दुर्बल एवं, अने अशु-RHI | चिना पुद्गलोए करीने व्याप्त एवू, अने सडी जवु, पडी जळू, अने नाश थq ए छे धर्म नाम स्वभाव ते जेनो एवं JI आ शरीर, प्रथम अथवा पछी जरूर त्यागवा जोग्य थशे. ए कारण माटे आवा शरीरमां कोण बुद्धिवंत पुरुष रीझ l | पामे? एटले जे बुद्धिशाली पुरुष होय, ते तेवा शरीरमांरंजित नज थाय." ए रीते कुमारे कडं. त्यार पछी कुमारनां l R| माता पिता फरीने कहेतां हवा. "हे पुत्र! आ तहारा बापदादोधी आवेलु ए, विस्तारवंत धन, कनक, Kal रत्न, मणि, मोती, शंख प्रवालां आदि पोताने वश्य एव॒ प्रधान द्रव्य छे. जे द्रव्य सात पेढी सूधी, अतिशे | || दिनादिकने एटले गरिब लोकोने आपवा मांडयुं होय अने पोते भोगववा मांडयु होय तोपण क्षय न धाय, एटले | खूटी न जाय एवं छे. ते कारण माटे ए प्रकारचें आ द्रव्य ते प्रत्ये पोतानी खुशी प्रमाणे रूडे प्रकारे भो गवीने, पोताने सदृश रूप लावण्यादि गुणोए करीने शोभायमान एवी अने पोताना मननी रुचि प्रमाणे | | चालनारी एवी घणी राजकन्याओ परणीने. तेमनी साथे आश्चर्यकारी एवा, संसार संबंधि भोगसुख भोगवीने 51 mrrma DELIDE For Private & Personal use only www.jainelibrary.org Jain Education Interie 2010_05 TAMIL
SR No.600040
Book TitleVairagya Shataka
Original Sutra AuthorPurvacharya
AuthorGunvinay
PublisherJindattsuri Gyanbhandar
Publication Year
Total Pages176
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size9 MB
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