SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 76
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वैराग्यशतकम् ॥ ७४ ॥ Jain Education Inter रोटा करने थालमा सूक्या. उपरथी शेलडी मूकी. ते शेलडो कर्षणीने घणी सारी स्वादिष्ट लागी पछी ज्यारे पोताना साला पूछ के आ शेलडी तमने क्यांथी मली ? एटले तमारे घेर क्यांथी आवी ? त्यारे सालाए कहूं के, ए अमारा घरमा नीपजे छे. बनेवीए पुछयुं. ते केवी रीते निपजे हे ? त्यारे साडाए शेलडी वावचानो विधि देखायो पछी कर्षणी जाण्यं के, महारे घेर पण हुं बाबीश. एम निर्धार करो घेर आवीने प्रथम जें घउनुं खेत्र वायुं तु, तेने उखेडी नाखवा लाग्यो. त्यारे लोकोए कं के, आ तुं शुं करे छे ? तेणे कां के, हुं एमां शेलडी बावीश. त्यारे लोको कहेवा लाग्या के, आ देशमां पाणी नथी, माटे शेलडी थशे नही. तेम छतां जो तने शेलडीज वाववानी इच्छा होय तो, एकवार जे आ घउनी खेती करेली छे ते कपावी ले, पछी शेलडी बनावजे. एवं लोकोनुं कहेतुं तेणे मान्युं नही, अने शेलडी चावी, ते थोडी उगी, एकलामां कुत्रामां पाणी खूटी पडयुं, तेथी जे उगेली शेलडी हती ते पण सुकाइ गड़. त्यारे पश्चाताप करवा लाग्यो. तेम हे स्वामिन ! तमे पण छतु सुख मूकीने बीजा नवा सुखनी चाहना करो छो तो पछी पस्ताशो !! एवी स्त्रीयोनी वाणी सांभली जंबूकुमारे कथं के, पूर्वोक्त दृष्टांते पचात्ताप नही करूं. परंतु जो नही समजशो तो तमेज पस्तावो करशो. हु तो ललितांग कुमारनी पेठे तमारा फंदमां नही पहुं. तेनी कथा कहुं हुं ते सांभलो. एक नगरमा एक शेठनो पुत्र ललितांग कुमार एवे नामे महा रूपयंत पुत्र हतो, तेने एक दिवसे ते नगरनां राजानी रूपवती नामा राणी छे, तेणीये दीठो. त्यारे एकांते बोलावीने तेनी साथै संसार संबंधी भोगविलास करवा लागी. एटलामां राजा पण त्यां आव्यो. त्यारे भयभ्रांत धइने, राणीए ते ललितांग 2010_05 For Private & Personal Use Only भाषांतर सहित || 98 || www.jainelibrary.org
SR No.600040
Book TitleVairagya Shataka
Original Sutra AuthorPurvacharya
AuthorGunvinay
PublisherJindattsuri Gyanbhandar
Publication Year
Total Pages176
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy