SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 174
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बैराग्यशतकम् ॥ १७२ ॥ 元毛儿儿 एज रीते एंटले पूर्वे कथा वा दश कोटाकोडि सागरोपमे, उत्सर्पिणी अने बीजा दश कोड (कोडि सागरमे, अवसर्पिणी थाय. ए वे मलीने वीश कोडाकोडि सागरोपमे, एक कालचक थाय. एवा अनंना कालचक्रे एक पुल परार्त्तन थाय ॥ इति पुगलपरावर्त्तन प्रमाणम्. ॥ थइने चक्रर्त्तिनुं सैन्य चाले, तोपण ते बालाय हाली शके नहीं, तथा अग्निये वली शके नही, तथा पाणीए करी भींजाय नही. एटले तेनी अंदर पाणी उतरी शके नही. तथा वायरे करी ते वालाग्र उडी शके नही, एवा ठांसीठांसीने भर्या होय, पछी ते वालाग्रह एकेको ककडो सो लो वर्षे काढीए, ते काढतां काढतां ज्यारे ते कुत्रो तमाम खाली थाय, त्यारे एक अद्धा बादर पल्योपम थाय. तेनां संख्यातां कोडाकोडि वर्ष थाय. आ दृष्टांत कथनमात्र छे. केमके, आ प्रमाण गगत्रीमां आवतुं नथी. गगत्रीमां तो सूक्ष्म अद्धा पल्योपम आवे छे. तेनु स्वरूप नीचे कढीए छोए. पूर्व का एवा जुगलियाना एकेका वालाग्रहना, असंख्याता खंड कल्पना ते बालाग्रना खंडे करी पूर्वे कह्या प्रमाणे, ते कुवा ठांशी ठांशीने भरीये. पछी तेमांथी पूर्वनी पेठे एकेको वालनो ककडो सो सो वर्षे काढए पछी ज्यारे ते कुवो तमाम खाली थाय, त्यारे एक सूक्ष्म अद्धा पल्योपम थाय तेनां असंख्यातां कांडाकोडी वर्ष थाय. तेवा दश कोडाकोडी सागरोपमे एक अद्धा सागरोपम थाय, एवीरीतना सागरोपमनुंममाण आ जग्याए जाणवुं आ वर्गांनो विशेष विस्तार श्री अनुयोगद्वार सूत्रमां तथा पांचमा कर्म ग्रंथां छे. त्यांथी विस्तार अर्थिये जोड़ लें. ॥ श्रीवैराग्यशतकम् समाप्तम् श्रीरस्तु ॥ Jain Education Intem 29 2010_05 For Private & Personal Use Only भाषांतर सहित ॥१७२॥ www.jainelibrary.org
SR No.600040
Book TitleVairagya Shataka
Original Sutra AuthorPurvacharya
AuthorGunvinay
PublisherJindattsuri Gyanbhandar
Publication Year
Total Pages176
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy