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ان القانون
छलभेद अन्यायादिक करीने एणे आपणुज भरणपोषण कयु छे, पण पोताना परलोकनुं साधन करवानो अवकाश बैराग्य
भाषांतर जरापण एणे लीधो नथी. एवी रीते कोइ रुदन करतुं नथी. माटे हे जीव ! हे महामूर्ख !! काइकतो विचार्य !! शतकम्
|सहित IV के, हुं आश्रवभावमांथी निवृत्ति पामीने काइकतो सरभावमा वर्तु।। ७१ ॥ ॥१२६॥ ॥ मागधिकावृत्तम् ।।
॥१२६॥ कुशाग्रे यथा अवश्यायो हिमबिंदुकः स्तोकं तिष्ठति लबमानः कुसंग्गे जेह उसबिंदुए। थोवं चिठेइ लंबमाणए । एवं मनुजानां जीवितं. समयमपि हे गौतम या प्रमादि
एवं मणुाण जीवियं । समयं गोथम भा पमायए ॥ ७२ ।। अर्थ-(जह के०) जेम (कुसग्गे के०) डाभना अग्रभागने विषे (उसबिंदुए के०) झाकलनो बिंदु जे ते (लंयमाणए | के०) लायो धतो सतो एटले वायु वडे पडवानी तैयारीमा आवेलो (थोवं के०) थोडो काल (चिठह के०) रहे छे. # (एवं के०) ए प्रकारे (माणुआण के०) मनुष्य जे तेमनु (जीवियं के०) जीवित जे ते चंचल जाणवू. माटे श्रीमहावीरMarl स्वामी गौतमस्वामी प्रत्ये* कहे छे के, (गोयम के०) हे गौतम ! (समयं के०) एक समयमात्र पण (मा पमायए के०) Id al प्रमाद न करीश. ॥ ७२ ॥
* आ वार्ता श्री उत्तराध्ययन सूत्रना दशमा अध्ययनमा छे, त्यांधी विस्तारना अधि पुरुषोए जोह लेष.
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