SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 74
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ साधुसाध्वी पडा हो, तथा जो पापड आदि पवनसे उडते हुए आकाशमें अधर रहे हो, अथवा जो आहार पवनसे भरीहुई है। आवश्य मशक (दीवडी ) आदिके उपर पडा हो और जो आहार बैल (बलद ) आदि चलने फिरनेवाले जानवरोंकी | कीय विचार पीठपर लदा ( रखा ) हुआ हो वैसा आहार लेवे वह ' निक्षिप्त ' दोष ३, कटोरी (वाटकी) आदि जिससे |संग्रह वहरानेका विचार हो उसमें पहलेका जो कोई सचित्त-अचित्त या मिश्र अन्नादि जो पडा हो उसको दूसरे किसी सचित्तादिक भेला डालकर उसी बरतनसे गृहस्थ वहरावे और साधु लेवे वह 'संहृत' दोष ४, वहरानेवाला , स्त्री या पुरुष जो ६०-७० वर्षसे अधिक वृद्ध उमरका होजानेसे कमजोरीके कारण आहारका बरतन 8 आदि हाथमें अच्छीतरह पकड नहीं सकता हो और जिसके हाथमेंसे चीज पडजाती हो १, जो घरका मालिक, न हो यानी अतिवृद्ध होजानेके कारण घरमें देने लेनेका जिसको अधिकार न हो २, जो नपुंसक हो ३, जिसका । है शरीर थर थर कांपता हो ४, जिसको बुखार (ताव ) चढा हो ५, जो अंधा हो ६, जो आठवर्षसे कम उमरका बालक हो ७, जो मदिरा-भांग-गांजा आदिके नशेमें बेभान हो ८, जो पागल हो ९, जिसको भूत वगैरह लगा। हो १०, जिसके हाथ अथवा पग कटे हुए हो ११, जिसके पगोंमें लकडीकी पावडियां पहरी हुई हो १२, जिसके | NEXTERASACAR ROCCACIRCUGC ॥७०॥ ____JainEducation inteN 2010_05 For Private Personal use only Allww.jainelibrary.org
SR No.600039
Book TitleAvashyakiya Vidhi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLabdhimuni, Buddhisagar
PublisherHindi Jainagam Prakashak Sumati Karyalaya
Publication Year
Total Pages140
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Ritual, & Vidhi
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy