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________________ AERA संग्रहा साधुसाध्वी हैकुर्छि आदिसे वहरावे वह 'पूतिकर्म ' दोष ३, शुरुसे ही साधु और गृहस्थ दोनोंके वास्ते जो आहार आवश्य॥६२ ॥ बनावे वह 'मिश्रजात' दोष ४, साधुको वहराने की अभिलाषासे जो आहार अपने बरतनमेंसे थोडी या ॐकीय विचार ज्यादा देरतक जुदा स्थापन करके रखे वह ' स्थापना ' दोष ५, अपने पुत्रादिकके विवाह आदिमें बने है हुए उत्तम आहारादिक साधुको बहरानेसे विशेष लाभ होनेकी अभिलाषासे विवाह आदि उत्सव आगे पीछे करे, अर्थात् गाममें जिस समय साधुका योग होवे उस समय विवाह आदि करे और उस विवाह के *आदि उत्सव संबंधी आहारादि साधुको बहरावे वह 'प्राभृतिका ' दोष ६, अंधेरे में रही हुई वस्तु दीवे || आदिसे शोधकर लाके बहरावे, अथवा अंधेरेमें साधु बहरते नहींहैं इससे प्रकाश होनेके वास्ते भीत तोडाकर बारी वगैरह करावे, अथवा अंधेरे में बनाया हुआ आहार साधुको बहरानेके वास्ते प्रकाशमें लाकर रखे वह 'प्रादुष्करण ' दोष ७, साधुके वास्ते वेचाती लाकर बहरावे वह 'क्रीत' दोष ८, साधु | E के वास्ते उधारा लाकर बहरावे वह 'प्रामित्य ' दोष ९, अपनी वस्तु दूसरेको देकर बदलेमें दूसरेकी ॥६॥ वस्तु लाकर साधुको वहरावे वह · परावर्तित ' दोष १०, अपने घरसे अथवा अन्य गामसे साधुके सामने | ____ Jain Education inten ww.jainelibrary.org For Private Personal Use Only 2 01005
SR No.600039
Book TitleAvashyakiya Vidhi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLabdhimuni, Buddhisagar
PublisherHindi Jainagam Prakashak Sumati Karyalaya
Publication Year
Total Pages140
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Ritual, & Vidhi
File Size7 MB
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