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________________ साधुसाध्वी ॥ ४६ ॥ Jain Education Int गुरु कहे - ' पवेयह ' इच्छं इच्छामि खमा० देकर कहे- 'भगवन् ! सुद्धावसहि ' गुरु कहे - ' तहत्ति ' । | सब जणे खमा० देकर 'इच्छा० संदि० भग० ! मुहपत्ति पडिलेहुं ? ' इच्छं, कहकर मुहपत्ति पडिलेहकर वांदणे देवे, फिर खमा० देकर 'इच्छा० संदि० भग० ! छम्मासिय कप्प संदिसाउं ? ' इच्छं इच्छामि खमा० इच्छा० संदि ० भग० ! छम्मासिय कप्प पडिग्गहुं ? ' इच्छं इच्छामि खमा० ' इच्छा० संदि० भग० ! सज्झाय उखिखवणऽत्थं मुहपत्ति पडिलेहुँ ?, इच्छं' कह कर मुहपत्ति पडिलेह कर वांदणे देवे, खमा० देकर कहे 6 इच्छा० संदि० भग० ! सज्झाय उख्खिनुं ?' गुरु कहे- ' उख्खिवह ' । ' इच्छं ' कहके फिर खमा० देकर कहे - ' इच्छा० संदि० भग० ! सज्झाय उख्खिवणऽत्थं काउसग्ग करूं ? ' गुरु कहे 'करेह ' | बाद 'इच्छं सज्झाय उक्खिवणऽत्थं करेमि काउसग्गं, अन्नत्थ० कहकर १ नवकार अथवा १ लोगस्सका काउस्सग्ग करे, | पारकर प्रगट १ नवकार अथवा १ लोगस्स कहे, खमा० देकर ' इच्छा० संदि० भग० ! असज्झाइय अणाउत्त | ओहडावणऽत्थं काउसग्गकरूं ? ' इच्छं असज्झाइय अणाउत्त ओहडावणऽत्थं करोमि काउस्सग्गं, अन्नत्थ० कहके * यदि काउस्सग्ग नवकार का करे तो पारके नवकार प्रगट कहे और लोगस्सका काउस्सग्ग करे तो पार के प्रगट लोगस्स कहे. al 2010 05 For Private & Personal Use Only विधि - संग्रह: ॥ ४६ ॥ www.jainelibrary.org
SR No.600039
Book TitleAvashyakiya Vidhi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLabdhimuni, Buddhisagar
PublisherHindi Jainagam Prakashak Sumati Karyalaya
Publication Year
Total Pages140
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Ritual, & Vidhi
File Size7 MB
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