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________________ साधुसाध्वी ॥४४॥ १७-सचित्त-अचित्त रज ओहडावण विधिःदेवसी पडिक्कमणा होजानेके बाद खमा० देकर 'इच्छा०संदि० भग० ! सचित्त अचित्त रज ओहडावणऽत्य संग्रहः काउस्सग्ग करूं ?, इच्छं सचित्त अचित्त रज ओहडावणऽत्थं करेमि काउस्सग्गं, अन्नत्थ०' कहकर ४ लोगस्सा का काउस्सग्ग करके, पार कर प्रगट लोगस्स कहे । वर्ष भरमें एक बार चैत्र सुदी ग्यारस, वारस और है। तेरस अथवा बारस, तेरस और चौदस अथवा तेरस, चौदस और पूनमके दिन यह काउस्सग्ग करना चाहिये। कदाचित् ग्यारस और बारसके दिन भूल जावे ? तो भी तेरस, चौदस और पूनमके दिन तो जरूर ही करना है चाहिये, यदि तेरसके दिन भी भूलजाय ? तो दूसरे वर्षकी चैत्री पूनम तक जब रजोवृष्टि होवे तब सूत्र ) पढना, सज्झाय करना नहीं कल्पता, ऐसा आवश्यक बृहद्वृत्ति वगेरहमें लिखा है १८-सज्झाय- निक्षेप-विधिःसाल भरमें दो वार चैत्र सुदी तथा आसोज सुदी पांचम के दिन दुपहर बाद इरियावही पडिक्कमके ॥४४॥ खमा० देकर 'इच्छा० संदि० भग० ! सज्झाय निख्खिवणऽत्थं मुहपत्ति पडिलेहुं ?” इच्छं, कहकर मुहपत्ति है। ***************XXX B ARACLE JainEducation Internamon2010_05 For Private & Personal use only ww.jainelibrary.org
SR No.600039
Book TitleAvashyakiya Vidhi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLabdhimuni, Buddhisagar
PublisherHindi Jainagam Prakashak Sumati Karyalaya
Publication Year
Total Pages140
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Ritual, & Vidhi
File Size7 MB
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