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साधुसाध्वी
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आषाढ चौमास में खमा • देकर 'इच्छा • संदि • भग • ! पीठफलग संदिसाउं ? इच्छं इच्छामि खमा ०, इच्छा ० संदि ० भग ! पीठ फलग पडिग्गहुं ? इच्छं' ऐसा कहना, और कार्त्तिक चौमासीमें खमा ० देकर कहे 'इच्छा० संदि • भग ० ! पीठफलग विसर्जू ? ' गुरु कहे- ' विसर्जेह' बाद 'इच्छे' कहना, पक्खी तथा फागण चौमासी और संवच्छरीमें ये आदेश नहीं कहने ।
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बाद दो बांदणे देकर अम्भुट्टिया खमाना आदि हमेशां की तरह देवसिय पडिकमणेका सब विधि करना, इतना विशेष है कि - सुयदेवी और क्षेत्रदेवी के काउसग्गके बीच में 'भवण देवयाए करोमि काउस्सग्गं, अन्नत्थ'० कहकर नवकारका (१) काउसग्ग करे, गुरु पार कर नमोऽर्हत् • कहकर " ज्ञानादिगुण युतानां” यह थुई कहे, ऐसे 'प्रतिक्रमण हेतु गर्भ' आदिकमें कहा है। सुयदेवी की थुइ "कमलदल विपुलनयना, कमल मुखी कमलगर्भसमगौरी | कमले स्थिता भगवती, ददातु श्रुतदेवता सौख्यम् " १ | और क्षेत्र देवीकी थुइ
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(१) - बिहार के दिन भी सुयदेवी और क्षेत्र देवीके बीच में भवण देवी का काउसग्ग करे, परंतु थुई " चतुवर्णाय संघाय, देवी भवनवासिनी । निहत्य दुरितान्येषा, करोतु सुखमक्षतम् १।” यह कहे ।
2010_05
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