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साधुसाध्वी
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कर गौचरीके पात्रे रख कर ऊपर झोली या लुहणा ढांक देवे, बाद उपाश्रयमें काजा निकाल कर निर्जीव भूमि में परठ कर पच्चख्खाण पारे ।
७- पञ्चक्खाण-पारण-विधि:
स्थापना के सामने अथवा गुरु आदि अपने से बडेके सामने खमा० देकर इरियावही पडिक्कमे, बाद खमा० देकर 'इच्छा० संदि० भग० ! चैत्यवंदन करूं ?, इच्छं' कहकर "जयउ सामिय" जंकिंचि० नमु स्थूणं० जावंति चेइयाई० जावंत केवि साहू ० नमोऽर्हत्० और उवसग्गहरं० कहकर “आभवमखडां ” तक जय वीयराय ! कहे, बाद खमा० देकर 'इच्छा० संदि० भग० ! सज्झाय संदि साउं ?, इच्छं ' इच्छामि खमा ० 'इच्छा० संदि० भग० ! सज्झाय करूं ?, इच्छं' कहकर १ नवकार धम्मो मंगलकी १७ गाथा तथा ऊपर १ नवकार कहे, बाद खमा० देकर 'इच्छा० संदि० भग० ! पच्चक्खाण पारवा मुहपत्ति पाडलेहुं ?, इच्छं' कहकर मुहपत्ति पडिलेहे, बाद खमा० देकर कहे- 'इच्छा० संदि० भग० ! पञ्चक्खाण पारावह' गुरु कहे- 'पुणो वि कायव्वो' बाद 'यथा शक्ति' कहकर फिर खमा० देकर कहे- 'इच्छा० संदि० भग० ! पच्चक्खाण पारूं ?"
2010_05
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