SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 115
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ साधुसाध्वी के दिन नहीं करना । इसी तरह यदि इग्यारसका क्षय होवे तोभी दशमका एकासणा तो दशमकेही दिन करना, आवश्य॥ १११ ॥ परंतु ज्योतिषके हिसाबसे सूर्य उदय युक्त दशम तिथीको अपनी मनः कल्पनासे इग्यारस मानकर उसके । कीय विचार सग्रह पहले नवमी जो कि वास्तवमें ज्योतिषके गणितानुसार सूर्य उदय युक्त नवमीहीहै, उस दिन दशमका एकासणा नहीं करना। १८--रातमें जिसके कच्चा पाणी पीना होवे उस श्रावकको देवसिय पडिकमणेमें दिवसचरिम । दुविहार का पञ्चख्खाण करना चाहिए, तिविहारका नहीं करना, क्योंकि तिविहारका पञ्चख्खाण करे बाद ।। सचित्त (कच्चा ) पाणी पीना नहीं कल्पता। . अगर कोई ऐसा कहे कि-अशन (अन्नादि), खादिम ( मेवा तथा फलादिक ) और स्वादिम (पान| सोपारी-इलायची आदि ) इन तीन प्रकारके आहारकाही तो तिविहारमें त्याग होताहै ? तो फिर कच्चा पाणी पीनेमें क्या हर्ज है ? तो जबाबमें मालूम होवे कि-जैसे तिविहार उपवासमें दिनभरके लिए तीन । ॥११॥ प्रकारके आहारका त्याग होताहै तथा तिविहार एकासणे-वियासणे आदि में एक वार अथवा दो वार खा लेने ICA Jain Education Inte www.jainelibrary.org For Private & Personal Use Only 2010-05
SR No.600039
Book TitleAvashyakiya Vidhi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLabdhimuni, Buddhisagar
PublisherHindi Jainagam Prakashak Sumati Karyalaya
Publication Year
Total Pages140
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Ritual, & Vidhi
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy