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________________ = स्फुरण शक्ति के कारण उन्होंने तपादि करके साधना का परिश्रम किया जिससे उनका दूसारा नाम ‘श्रमण और कोई आकस्मिक भय आने पर या क्रूर ऐसे सिंहादि जंगली जानवरों का भय आने पर निश्चल रहने वाले अपने द्दढ संकल्प से थोडा भी नहीं डिगने वाले, कोइ भी परिषह याने भूख-प्यास विगेरे संकट आने पर तथा उपसर्ग याने दूसरों की तरफ से किसी भी प्रकार के शारीरिक संकट आने पर थोडे भी विचलित नहीं होते थे । इन परिषहों को और उपसर्गों को क्षमा से और शांत चित्त द्वारा सहन करने में समर्थ थे। भद्रादि प्रतिमाओं का अथवा एक रात्रि को प्रमुख अभिग्रहों का पालन करने वाले, तीन ज्ञान द्वारा शोभित होने से धीमान अर्थात् ज्ञानवाले, 8 शोक और खुशी के प्रसंग आने पर भी दोनों को समान भाव से सहन करने वाले है, सद्गुणों के भण्डार तथा 卐वीरता के विशेष गुणों से युक्त होने से देवो ने उनका तीसरा नाम श्रमण भगवान महावीर रक्खा। १०५) श्रमण भगवान महावीर के पिता काश्यप गोत्र के थे। उनके तीन नाम इस प्रकार से है:-सिद्धार्थ, श्रेयांस और यशस्वी। elambe 84 womanmentary
SR No.600025
Book TitleBarsasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipak Jyoti Jain Sangh Mumbai
PublisherDipak Jyoti Jain Sangh Mumbai
Publication Year2002
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationManuscript & agam_kalpsutra
File Size26 MB
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