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________________ आभूषणादि देकर उन सबका सत्कार-सन्मान किया। इस प्रकार का कार्य करने के बाद उन सबसे इस प्रकार कहा| १०३) “पहले भी हे देवानुप्रियों। हमारा यह पुत्र जब गर्भ में आया तब इस प्रकार का विचार-चिन्तन यावत् 3 मनोगत भाव पैदा हुआ था कि जब से लगाकर हमारा यह पुत्र गर्भ में आया है तब से लगाकर हमें चांदी, सोना, ॐ धन, सत्कार, सन्मान प्रीति में बढ़ौती हुई है तथा सामंत राजा हमारे अधीन हुए है। इस कारण जब हमारा यह पुत्र जन्म लेगा तब हम इन कार्यों के अनुसार इसका नाम गुणों के शोभास्पद गुणनिष्पन्न यथार्थ ‘वर्धमान ऐसा ॐ रक्खेंगे। अतः इस कुमार को ‘वर्धमान' नाम से प्रसिद्ध करते हैं । १०४) श्रमण भगवान महावीर काश्यप गोत्र के थे। उनके तीन नाम इस प्रकार से कहे जाते है। उनके माता-पिता के द्वारा रखा हुआ ‘वर्धमान', स्वाभाविक स्मरण शक्ति के कारण दूसरा नाम श्रमण याने सहज 0000000卐00930 83 en inte Forvetes Pesonel Use Only
SR No.600025
Book TitleBarsasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipak Jyoti Jain Sangh Mumbai
PublisherDipak Jyoti Jain Sangh Mumbai
Publication Year2002
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationManuscript & agam_kalpsutra
File Size26 MB
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