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________________ 0000000卐00000 के चौक में चन्दन के कलश रक्खवाओ, प्रत्येक दरवाजों पर चन्दन के कलशों से रमणीय बने हुए तोरण बंध ॐ वाओ, जहां तहां शोभा दे वैसे लम्बी लम्बी गोल मालाएं लटकावो, पंचवर्णी सुन्दर सुगन्धित पुष्पों के ढेर लगावो व चारों ओर जमीन पर फूल बिछवावो, फूलों के गुलदस्ते रखाओ, प्रत्येक स्थानों पर अगर, कुंदरु, तुर्की आदि सुगन्धित धूप से संपूर्ण नगर सुवासित बनाओ, ऊची उठती महक से सारा नगर सुगन्ध से परिपूर्ण बने वैसा करो, मानों किसी ने चारों ओर सुगन्धित भरी गुटिकाएं न रक्खी हो ऐसा लगे वैसा करो। 2 इसके बाद नगर के प्रत्येक स्थानों में नटलोक खेलते हो, नृत्य करने वाले नृत्य करते हो, रस्सी पर चढ़कर * खेल करने वाले खेल दिखाते हो, मल्ल कुश्ती करते हो, मुट्ठी से युद्ध करने वाले, मनुष्यों को हास्य कुतूहल * करवाने हो वैसे विदूषक, जो उछल-उछलकर नाचने वाले भांड, कथाओं द्वारा कथाकर जन-मन रन्जन करने वाले, पाठक जो सुभाषित कथन करते हो, रास खेलनेवाले रास खेलते हो, भविष्य वेत्ता, भविष्य बताते हो, बांस पर चढ़कर उसकी चोटी पर खेलने वाले, चित्रपट हाथ में रखकर भिक्षा मांगने वाले, चमडे की मसाक 000000
SR No.600025
Book TitleBarsasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipak Jyoti Jain Sangh Mumbai
PublisherDipak Jyoti Jain Sangh Mumbai
Publication Year2002
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationManuscript & agam_kalpsutra
File Size26 MB
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