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गायादि पशुओं से, सोना, चांदी, रत्न, मणि, मोती, दक्षिणार्वत शंखो से, राज्यपट्ट याने राजाओं की ओर से मिलते खिताबों-पदविओं से, परवाल, लालरत्न, माणिक ऐसे अनेक प्रकार के धन से यह ज्ञात कुल बढने लगा, यावत् परस्पर स्नेह-प्रेम, आदर-सत्कार में भी दिन प्रतिदिन अन्य देशों से आगे बढ़ने लगा।
८६) इसके पश्चात् श्रमण भगवान महावीर के माता-पिता को इस प्रकार का आत्मविषयक, चिंतित, प्रार्थित मनोगत संकल्प उत्पन्न हुआ कि “जब से लगाकर अपना यह बालक कुक्षी में गर्भ के रुप में उत्पन्न हुआ है, तब से लगाकर हम हिरण्य, सुवर्ण, धन और धान्य से वृद्धि पाए हुए है, तथा राज्यश्री से, राष्ट्र से, सेना से, वाहनों से, धनभण्डारों से, कोठार से, पुर से, अन्तःपुर से, जनपद से, तथा यशः कीर्ति से बढे है इसके सिवाय धन, कनक, रत्न, मणि, मोती, शंख, शिलालेखों से, माणिकादि सच्चे धन से - हमारे यहां वृद्धि हुई है तथा संपूर्ण ज्ञात कुल में आपस में प्रेम, स्नेह खूब-खूब वृद्धि पाया है तथा एक दूसरे की ओर आदर सत्कार भी खूब बढने लगा है इसलीए जब हमारा यह पुत्र जन्म लेगा तब हम इस पुत्र का नाम सभी वृद्धि के अनुरुप, गुणनिष्पन्न “ वर्धमान " (वृद्धिवान, बढता हुआ) ऐसा रक्खेंगे।
後雙雙
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