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________________ चाहे तो इस विषय में पूर्व कथनानुसार पूछकर ही जाना चाहिये । 卐 (२७९) चातुर्मास रहा हुआ साधु, सबसे अन्तिम मारणांतिक संलेखना का आश्रय लेकर शरीर को नष्ट करने की इच्छा से @ आहार-पानी का त्याग कर पादपोपगतम होकर मृत्यु की अभिलाषा न कर विचरण करना चाहता और इस संलेखना के उद्देश्य से गृहस्थ के घर की ओर जाना चाहे, उस तरफ प्रवेश करना चाहते हए अशन-पान खादिम और स्वादिम आहार करने के लिये चाहता हैं शौंच या पेशाब को परठने, स्वाध्याय करने या धर्म जागरिका जागने चाहे तब इन सभी प्रवृतिओं के सम्बन् AT में भी गुरू को पूछे बिना करना नहीं कल्पता। (२८०) चातर्मास में रहे हुए साधु वस्त्र, पात्र, कम्बल रजोहरण एवं अन्य उपधि तपाने के लिये एक बार धूप में सुकाने के लिये न तपाने से कुत्सापनक आदि दोषोत्पति का संभव होने से बारबार तपाना चाहे तब एक साधु या अनेक साधुओं को मालुम किये बिना उसे गृहस्थ के घर आहार-पानी के लिये आना-जाना य अशनादि का आहार करना, जिन मन्दिर जाना, शरीर चिन्तादि के लिये जाना आना या अशनादि का आहार करना,जिन मन्दिर जाना शरीर चिन्तादि के लिये जाना, स्वाध्याय करना, कार्योत्सर्ग करना एवं एक स्थान में आसन करके रहना नहीं कल्पता। Of00000000 04-09卐ON 209
SR No.600025
Book TitleBarsasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipak Jyoti Jain Sangh Mumbai
PublisherDipak Jyoti Jain Sangh Mumbai
Publication Year2002
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationManuscript & agam_kalpsutra
File Size26 MB
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