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________________ ॐ नन्दनवन के फुलों से गूंथी हुई माला जिन्होंने पहनी हुई है, ऐसे यह इन्द्र सौर्धम नामक कल्प (स्वर्ग) में आये हुए ॐ सौधर्मावतंसक नाम के विमान में बैठी हुई सौधर्म नाम की सभा में शक्र नाम के सिंहासन पर बैठे हुए थे। १४) वहां वे बत्तीस लाख विमानवासीदेव, चोरासी हजार सामानिकदेव, तेतीसत्रायास्त्रिंशक देव, चार लोकपाल, अपने अपने परिवार सह आठ बडी पट्टराणी, तीन सभा, सात सैन्य, सात सेनाधिपति, चारों दिशाओं में चोराशी हजार (यान तीनलाख छत्तीस हजार) अंगरक्षक देव और सौधर्म सभा में रहनेवाले अन्य बहत से वैमानिक देव और देवियों Q इन सब पर आधिपत्य भोगता हआ रहता है, याने इन सब अपनी प्रजा का पालन करने का सामर्थ्य यह रखता * है और इन सबका अग्रेसर सुरपति है, स्वामी नायक है, भर्ता-पोषक है, और इन सबका वह महत्तर-महामान्य-गुरु समान है। इसके सिवाय इन सब पर अपने द्वारा नियुक्त देवों से ऐश्वर्य और आज्ञादायित्व दिखाता रहता है। इन सब पर ईश्वर समान मुख्य रुप से उसकी अपनी आज्ञा ही चलती है, इस प्रकार से रहता और अपनी प्रजा का पालन करते हुए, निरंतर चलते हुए नाटक, संगीत, वीणावादन, हाथताली तथा अन्य बाजों और मेहनी जैसी गंभीर For Private & Pasonal use only
SR No.600025
Book TitleBarsasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipak Jyoti Jain Sangh Mumbai
PublisherDipak Jyoti Jain Sangh Mumbai
Publication Year2002
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationManuscript & agam_kalpsutra
File Size26 MB
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