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________________ 140 500 40 4500 40 मैने चाहा है और मुझे मान्य भी है, हे देवानुप्रिय ! जो यह बात आप कहते हो वह यह सच्ची ही बात है", उन स्वप्नों के फल को अच्छी तरह से स्वीकार कर याने इन स्वप्नों के फल को जान समझकर रिषभदत्त ब्राह्मण के साथ उदार - विशाल ऐसे मनोवांछित और भोगने योग्य भोगों को भोगती हुई देवानंदा ब्राह्मणी रहती है। १३) अब उस समय और उस काल में देवों का राजा वज्रपाणि- हाथमें वज्रको रखनेवाला, असुरों के पुरोको - नगरों को नाश करनेवाला - पुरंदर, सो बार श्रावक की प्रतिमा करनेवाला- शतक्रतु, हजार आंखवाला - सहस्त्राक्ष, बड़े-बड़े मेघों को नियंत्रित करनेवाला मघवा, पाक नामक असुर को दण्डित करनेवाला - पाकशासक, दक्षिण तरफ के अर्द्धलोक का अधिपति- दक्षिणार्ध लोकाधिपति, बत्तीस लाख विमान का स्वामी और ऐरावण हाथी पर बैठनेवाला ऐसा सुरेन्द्र अपने स्थान पर बैठा हुआ था । उस सुरेन्द्रने मिट्टी बिनाके अंबर-गगन जैसे स्वच्छ वस्त्र पहने हुए है, यथोचित्त माला व मुकुट धारण किये हुए है ऐसा, सोने के नये आश्चर्यकारी ऐसे या चित्रित कारीगरी वाले और बारंबार चलायमान दो कुण्डलों के कारण जिनके दोनों गाल चमकते थे, इनका शरीर दमकता था, पैर पर लटकती ऐसी लम्बी 13 cation International For Private & Personal Use Only
SR No.600025
Book TitleBarsasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipak Jyoti Jain Sangh Mumbai
PublisherDipak Jyoti Jain Sangh Mumbai
Publication Year2002
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationManuscript & agam_kalpsutra
File Size26 MB
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