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________________ 140 1500 40 500 40 5 उ. कुल इस प्रकार से है:- 1. ऋषिगुप्तक, 2. ऋषिदत्तिक और 3. अभिजयन्त । (२१६) व्याघ्रापत्य गोत्रीय तथा कोटिक काकंदिक उपनाम वाले स्थवीर सुस्थित और स्थवीर सुप्रतिबुद्ध से कौटिक नामक गण निकला । उसकी चार शाखायें और चार कुल निकले । प्र. अब वे कौन कौनसी शाखायें है ? उ. शाखायें इस प्रकार है:- 1. उच्चनागरी, 2. विद्याधरी, 3. वज्री और 4. मध्यमिका | प्र. अब वे कौन कौन से कुल है ? उ. कुल इस प्रकार से है:- 1. ब्रह्मलीय, 2. वत्सलीय, 3. वाणिज्य और 4. प्रश्नवाहक । (२१७) व्याघ्रापत्य गोत्रिय तथा कोटिक काकंदिक उपनाम वाले स्थवीर सुस्थित और स्थवीर सुप्रतिबुद्ध के पुत्र के समान ये पांच सुप्रसिद्ध स्थवीर अन्तेवासी थे । 1. स्थवीर आर्य इन्द्रदिन्न, 2. स्थवीर प्रियग्रन्थ, 3. काश्यपगोत्र वाले विद्याधर गोपाल, 4. स्थवीर ऋषिदत्त और 5. स्थवीर अर्हदत्त । cation International For Private & Personal Use Only 181 40 500 40 500 40 500 40
SR No.600025
Book TitleBarsasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipak Jyoti Jain Sangh Mumbai
PublisherDipak Jyoti Jain Sangh Mumbai
Publication Year2002
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationManuscript & agam_kalpsutra
File Size26 MB
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