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और स्थवीर प्रभास ये दोनों स्थवीरों ने तीन सौ तीन सौ श्रमणों को वाचना दी थी, इस कारण से हे आर्यो ऐसा कहा जाता हैं कि श्रमण भगवान महावीर के नव गण और ग्यारह गणधर थे ।
(२०३) श्रमण भगवान महावीर के ये सब ग्यारह गणधर द्वादशांगी के ज्ञाता थे, चौदह पूर्व के वेत्ता थे और • समग्र गणि पिटक के धारक थे। वे सब पानी बिना एक महिना का अनशन कर राजगृह नगर में काल धर्म पाये यावत् सर्व दुःखों से मुक्त हुए।
श्री महावीर 'प्रभु' के मोक्ष में जाने के पश्चात् स्थवीर इन्द्रभूति और आर्य सुधर्मा ये दोनों स्थवीर परिनिर्वाण पाये । (२०४) जो इस समय श्रमण निर्ग्रन्थ विचरण करते है-विद्यमान है वे सब आर्य सुधर्मा अनगार के संतान है यानी इनकी शिष्य संतान की परंपरा के है शेष सभी गणधर शिष्य संतान बिना के विच्छेद पाये थे । (२०५) श्रमण भगवान महावीर काश्यप गौत्रीय थे के अंते वासी शिष्य थे।
। उनके अग्निवेशायन गौत्रीय स्थवीर आर्य सुधर्मा नाम
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