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________________ रूप में उत्पन्न हुए । (१९२) कौशलिक अर्हन् ऋषभ तीन ज्ञान से युक्त भी थे, वह जैसे “मैं च्यवुगा" ऐसा जानते है, इत्यादि सब प्रथम श्री महावीर के प्रकरण में आया है वैसा कहना यावत् “माता स्वप्न देखती है' वहाँ तक। वे स्वप्न इस प्रकार है-“गज, वृषभ'' इत्यादि । विशेष में यह कि प्रथम स्वप्न में "मुंह में प्रवेश करते वृषभ को देखती है, ऐसा यहाँ समझना । इसके सिवाय दूसरे सभी तीर्थकर की माताएँ प्रथम स्वप्न में 'मुंह में हाथी को प्रवेश करती देखती हैं । ऐसा समझना । फिर स्वप्न की जानकारी भार्या मरूदेवी,नाभि कुलकर को कहती है। यहाँ स्वप्न फल बताते वाले स्वप्न पाठक नहीं है, इसलिए स्वप्नफल नाभि कुलकर स्वय ॐ कहते हैं। (१९३) उस काल और उस समय में ग्रीष्मऋतु के प्रथम मास, प्रथम पक्ष यानी चैत्र मास की कृष्ण अष्टमी के दिन नौ महीने परिपूर्ण होने के पश्चात् उपरांत सात अहोरात बीतने के बाद यावत् उत्तराषाढ़ा नक्षत्र का योग आने पर आरोग्यवाली माता ने आरोग्य पूर्वक कौशलिक अर्हन् ऋषभनाम के पुत्र को जन्म दिया । यहाँ पहले कही गई जन्म संबंधी सारी जानकारी उसी प्रकार से जानना यावत् देव और देवियोंने आकर वसुधारा बरसाई' वहाँ तक । शेष सब उसी प्रकार ही समझना । विशेष में कैदी खाने की शुद्धिकरनी, यानी कैद खाने से कैदियो को मुक्त करना, मान - उन्मान की वृद्धि करना यानी नाप तोल की बढोतरी करना, जकात - कर माफ करना, विगेर कार्य करना कुल मर्यादा पालने तथा धूसरी ऊंची करवाना, यानी खेत जोतने, गाड़ियाँ चलाना प्रमुख 000000000卐O 0 FACEU
SR No.600025
Book TitleBarsasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipak Jyoti Jain Sangh Mumbai
PublisherDipak Jyoti Jain Sangh Mumbai
Publication Year2002
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationManuscript & agam_kalpsutra
File Size26 MB
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